81. अशोक वन में सीता के केश बिखर गए । वस्त्र फट गए। उसके जूड़े में लगे फूल झड़ - झड़कर पृथ्वी पर बिखर गए । सीता - हा सौमित्र, हा आर्यपुत्र कहती जा रही थी । वह अपने अंग के आभूषण उतार - उतारकर पृथ्वी पर फेंकती जाती थी , जिससे कदाचित् राम उन्हें देख उसके हरण की दशा को पहचान लें । जब सीता का नूपुर उनके पैर से खिसककर गिरा, तो ऐसा प्रतीत हुआ , जैसे आकाश से पृथ्वी पर बिजली गिरी । जब आभूषण गिरते थे, तो ऐसा प्रतीत होता था कि आकाश से तारे टूट -टूटकर गिर रहे हैं । ऐसा प्रतीत होता था कि सीता के दु: ख से सूर्य भी निश्चल हो गए, वन देवता भी जैसे थर- थर कांपने लगे । वन के मृग , सिंह, बाघ भी शोकद्रवित हो गए। पर्वत शोकमग्न हो झरने के बहाने अपने आंसू बहाने लगे । सीता राम और लक्ष्मण कहीं आते दीख जाएं , इस आशा से बार- बार चारों ओर देखती जाती थी । वह रावण से विलाप के बीच- बीच कह रही थी - “ अरे अधम , तस्कर , दुरात्मा , तुझे यह नीच कार्य करने में लज्जा नहीं आती ? अरे छली, कायर , तेरे इस कुत्सित कर्म को तो संसार के मनुष्य क्रूर और अधर्म ही कहेंगे, तेरे पराक्रम को धिक्कारेंगे। अरे , तुझ पापी पर धिक्कार है। तूने तो अपने इस आचरण से अपने कुल को भी कलंकित किया । अरे , तू तो अपने को वीर बताता था । अरे , जो कहीं वे दोनों महात्मा दशरथकुमार राह में मिल गए, तो तू अपनी मृत्यु हुई जान । मुझे हरण करके तेरा कुछ भी उद्देश्य पूरा न होगा । मैं तो तत्काल प्राण दे दूंगी । " ___ इस प्रकार विलाप करती हुई सीता ने जाते -जाते राह में एक पर्वतकूट पर पांच वानरों को बैठे देख अपना पीत उत्तरीय उताकरफेंक दिया । उसमें कुछ गहने भी बांध दिए। वे वानर उस विलाप करती हुई सीता को एकटक देखते रहे । अन्तत: वह दुर्धर्ष रावण सीता को लेकर निर्विघ्न लंका में जा पहुंचा। वह सीता को अन्त: पुर के द्वार के भीतर ले गया । वह द्वार स्वर्ण का था । उसकी खिड़कियां हाथी दांत की थीं तथा गवाक्ष चांदी के थे। वहां दिव्य दुन्दुभि बज रही थी । राक्षसराज रावण बलपूर्वक सीता का हाथ पकड़े महल की स्वर्णमयी सीढ़ियों पर चढ़ने लगा। हाथी दांत और चांदी की खिड़कियों में सोने की जालियां लगी थीं । रावण अपना महल सीता को दिखाने लगा । अनेक भवन , तालाब और बारहदरियां दिखाईं, फिर कहा - “ हे सीते, मेरे अधीन असंख्य राक्षस हैं । अब मैं और मेरा यह सारा राज - पाट और वैभव तेरे अधीन है। तू मुझे प्राणों से भी अधिक प्रिय है। मेरे मणिमहल में हजारों सुन्दरियां हैं , उन सबके ऊपर मैं तुझे महारानी बनाना चाहता हूं । समुद्र से घिरी इस लंका का विस्तार सौ योजन का है, इसे इन्द्र सहित सब देवता भी विनष्ट नहीं कर सकते । वह देख , उस गगनस्पर्शी महल में देवराट् इन्द्र बन्दी है । अब तू उस भिक्षुक राम के साथ रहकर भला क्या करेगी ? सो तू उसका ध्यान छोड़ दे । यह देख , मेरा पुष्पक विमान सूर्य के समान देदीप्यमान है, जिसे मैंने अपने भाई कुबेर से
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