पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२८७

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छीना है। यह अति रमणीय विमान मन के समान गतिमान् है। इस पर बैठकर तू मेरे साथ स्वच्छन्द विहार कर । मैं तेरी आज्ञा के अधीन रहने वाला, रावण तेरा दास हूं । " सीता ने तब तिनके की ओट करके कहा - “ हे रक्षेन्द्र , आपका यह सब कथन और कार्य आपके लिए शोभनीय नहीं है । कैसे आश्चर्य की बात है कि आप प्रजापति के वंश के पुरुष तथा महावीर होकर ऐसा कायरतापूर्ण कुकर्म कर बैठे । मेरे पति रघुकुल -तिलक श्रीराम हैं , वे सत्यप्रतिज्ञ जगत् में विख्यात हैं , यदि जनस्थान में उनके सामने पड़ जाते तो अवश्य ही मारे जाते । आप चाहे मेरे इस अवश शरीर को बांधे या नष्ट कर दें , पर मैं आर्यपुत्र दाशरथि को छोड़ किसी अन्य पुरुष को नहीं छू सकती । ” तब रावण ने कहा- “ मैथिली, मैं आज से बारह मास की अवधि तक तेरी स्वीकृति की प्रतीक्षा करूंगा, यदि इतने दिनों में भी तू मुझे स्वीकार न करेगी , तो मैं तेरा वध करके भक्षण करूंगा, यह तू भली - भांति सोच ले। " इतना कहकर उसने सीता को अशोक - वन में ले जाकर रहने की व्यवस्था कर दी . जहां उसके लिए सब सुख - साधन उपस्थित कर दिए गए ।