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है । दोनों, दोनों के पूरक हैं जब दोनों एक होते हैं , हमारे प्राणों को चरम सुख देते हैं। " सुलोचना ने नयन मूंद लिए। वह प्रियतम के वक्ष पर झूल गई । न कुछ कहने को रहा, न सुनने को । वह सब कुछ पा चुकी थी । सब कुछ समझ चुकी थी । विश्वजयी मेघनाद जैसे अपनी समूची अर्जित सम्पत्ति को किसी अव्यक्त दैवी प्रभाव से सजीवावस्था में अपने अंक में धारण किए अपने को और विश्व को भूल चुका था ।