पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३२

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5 . प्रलय मसीह से लगभग बत्तीस सौ वर्ष पहले यह जगद्विख्यात प्रलय हुई थी , जिसका वर्णन संसार की सब प्राचीन पुस्तकों में है। इस प्रलय का वर्णन हमारे ब्राह्मण - ग्रन्थों तथा पुराणों में तो है ही , प्राचीन पर्शिया के इतिहास - लेखक जैनेसिस ने भी इस सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा है । यह प्रलय संभवत : वर्तमान मेसोपोटामिया और पर्शिया के उत्तर - पश्चिम प्रदेश में हुई थी । पाठक यदि नक्शे में ध्यान से देखेंगे तो उन्हें पता लगेगा कि पर्शिया का यह भाग दक्षिण में फारस की खाड़ी और उत्तर में काश्यप सागर से दबा हुआ है। पर्शिया के पश्चिमोत्तर कोण में जो अरमीनिया प्रदेश है , वहां के बर्फीले पर्वतों से फरात नदी निकलकर मेसोपोटामिया में आई है, जो मेसोपोटामिया की खास नदी है । यह नदी बहुत बड़ी और विस्तार वाली है । मेसोपोटामिया में और भी नदियां हैं । शतुल अरब ऐसी नदी है जिसमें समुद्र में चलने वाले जहाज आ - जा सकते थे। कहते हैं प्राचीन बसरा नगर , जो ईसा की छठी या सातवीं शताब्दी में बसाया गया था , में एक लाख बीस हजार नहरें थीं , जिनमें नावें चलती थीं । इससे हम समझ सकते हैं कि ये नदियां समुद्र के समान ही गहरी और बड़ी थीं । संभवत : बर्फ के बांध टूटकर इसी दजला नदी में बाढ़ आई और उस प्रदेश को , जो फारस की खाड़ी और काश्यप सागर के बीच है, समूचा डुबो दिया । इस भूस्थल में कुछ ऐसे स्थल थे जो समुद्रतल से अठारह हजार फीट ऊंचे थे । वहां संभवत : जल नहीं पहुंचा। परन्तु वृक्ष वनस्पति और मनुष्य , पशुपक्षी इस देश के भी नष्ट हो गए । पैलेस्टाइन का वह भाग , जो फारस की खाड़ी के पश्चिम - दक्षिण में है, समुद्र से केवल छः हजार फीट ऊंचा है। वह सर्वथा जलमग्न हो गया और वहां के सब जीव - जन्तु वनस्पति नष्ट हो गए। वह नष्ट होने वाली जाति अर्राट थी जो महाराज अत्यराति जानन्तपति की वंशज थी । दक्षिण रूस का नाम उन दिनों उत्तर मद्र था । यहीं से मद्र - मेडेज - ईरान में आए थे, जिनके मद्रपति वंशधर महारथी शल्य महाभारत संग्राम में सम्मिलित हए थे । __ इस प्रलय में सारा ईरान जलमग्न हो गया और वह मृत्युलोक बन गया । उस प्रलय का कारण वहां के किसी ज्वालामुखी का विस्फोट था । ज्वालामुखी के विस्फोट से बर्फ की चट्टानें टूट गईं और दलजा नदी का उद्गम , काश्यप सागर और फारस की खाड़ी इन सबने मिलकर ईरान को जलमग्न कर दिया । काश्यप सागर प्रदेश में एक स्थान बाकू है, जहां अब भी पृथ्वी से अग्नि निकलती है । इस अग्नि - दृश्य को देखने सिकन्दर भी गया था । यहअग्नि दृश्य संभवत : उसी ज्वालामुखी के विस्फोट का अवशेष है। शतपथ ब्राह्मण में तथा मत्स्यपुराण में इस प्रलय की जो घटना वर्णित है, उसमें लिखा है कि मनु के हाथ एक मछली - मत्स्य लगी जिसने उसकी रक्षा की । इस मत्स्य का भी इतिहास सुनिए । यह मनु संभवत : मन्यु - अभिमन्यु या उसके वंशधर थे । बाइबिल में तथा अवेस्ता में इसे नूह का नाम दिया गया है । बेबीलोनियन दन्तकथा के अनुसार प्रलय से पूर्व बेबीलोनिया में मत्स्य