पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३२४

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“किन्तु बालि का पराक्रम - शौर्य कैसा है? " “ वह बड़ा बली है । सूर्योदय से पूर्व ही उठकर समुद्र - तट तक जाता है। बड़े- बड़े शिला - खम्भों को भुजाओं में उठा लेता है। उसने अनेक दैत्यों - दानवों और राक्षसों का दलन किया है । उसका बल अपरिसीम है। केवल मतंग ऋषि की आन मान यहां नहीं आता है । इसी से मैंने यहां आकर शरण ली है । " “ तो मित्र , तू निश्चिन्त रह। मैं बालि - वध कर तेरी राह का कंटक दूर करूंगा। " “किन्तु मित्र आप मेरी बात को अपना तिरस्कार न समझें। मैं बालि के बल को जानता हूं , किन्तु आपकी सामर्थ्य से अज्ञात हूं । " राम ने हंसकर कहा - " तो मित्र, तू मेरी परीक्षा ले ! " “मित्र , ये सम्मुख सात ताड़ एक ही वृत्त में हैं । बालि इन सातों को एक साथ ही हिला सकता है। बाण से एक - एक को बींध सकता है। क्या आप भी बाण से इनमें से किसी एक को फाड़ सकते हैं ? " । राम ने होठों को दांतों में दबाकर धनुष पर बाण - संधान किया और एक ही बाण से सातों ताड़ों को बींध दिया । राम का यह हस्तलाघव और चमत्कार देख सुग्रीव हर्ष से उल्लसित होकर बोला - “ हे मित्र , आप तो एक ही बाण से वज्रपाणि देवराट का भी वध कर सकते हैं । अब मैं निर्भय हुआ। मैंने जान लिया कि आप मेरे शत्रु का वध कर मुझ अकिंचन को निष्कंटक करेंगे । " राम ने सुग्रीव को गले लगाकर कहा - “मित्र , चिन्ता न करो। चलो , अब किष्किन्धा चलें । विलम्ब की क्या आवश्यकता है ? " । किष्किन्धा पहुंच सुग्रीव ने बालि को मल्लयुद्ध के लिए ललकारा । सुग्रीव की ललकार सन बालि अखाड़े में आ उपस्थित हआ। दोनों का मल्लयद्ध राम - लक्ष्मण छिपकर देखने लगे । देखते - ही - देखते बालि ने सुग्रीव को पीट -पीटकर भगा दिया और स्वयं हंसता हुआ राजधानी में लौट गया । युद्ध में पिटकर सुग्रीव ने खीझकर राम को उलाहना दिया – “ आपने मुझे व्यर्थ ही पिटवाया और देखते रहे। इससे क्या लाभ हुआ ? " । राम ने कहा - “ एक भूल हो गई थी मित्र , तेरा कोई चिह्न न था । तुम दोनों एक जैसे ही थे। कल तू पुष्प -माला पहनकर युद्ध कर। " दूसरे दिन सुग्रीव बालि के राजद्वार पर जा फिर सिंह- गर्जना करने लगा । उसकी गर्जना सुन अपशब्द बकता हुआ बालि बाहर निकला । उसके नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे। तारा ने उसे रोकते हआ कहा - " आज तुम युद्ध मत करो , सुग्रीव की गर्जना में अहंकार - ध्वनि है । कहीं उसे कोई सहायता न मिल गई हो । मैंने अंगद से सुना है कि दो धनुषधारी मानवों से उसने मित्रता की है । वे उसके साथ हैं । " परन्तु बालि ने कहा - " क्या मैं शत्रु की गर्जना सुनकर घर में बैठा रह सकता हूं ? और आज तो मैं उसे मार ही डालूंगा। मैंने तो कल अनुकम्पा से ही उसके प्राण छोड़ दिए थे। " ___ थोड़ी ही देर में मल्लयुद्ध छिड़ गया । सुग्रीव भी आज प्राणपण से जुट गया । जब दोनों वीर परस्पर गुंथे थे, तभी राम ने एक अग्निबाण तानकर छोड़ा, जो बालि के कण्ठदेश को फोड़ता हुआ उसकी उरो -गुहा में धंस गया । बालि तत्क्षण मुख से खून फेंकता हुआ पृथ्वी