पर गिरकर छटपटाने लगा। यह देख बहुत- से वानर मन्त्री और अन्य पुरुष भी वहां जुट गए। राम - लक्ष्मण उसके निकट जा पहुंचे। राम का परिचय बालि को सुग्रीव ने दिया । राम के बाण ही से उसका पराभव हुआ है, यह भी कहा। सुनकर दु: खी बालि ने कहा __ " हे धनुषधारी, तूने दूसरे से युद्ध करते हुए मुझको छिपकर मारा है । तू पराक्रमी और चरित्रवान नहीं है , विश्वासघाती है। तू तृण से ढके हुए कुएं के समान है। मैं तो कभी तेरे राज्य में गया नहीं , कभी तेरा कुछ अनिष्ट किया नहीं। तेरा रूप - वेश मुनिजन जैसा है , धज क्षत्रियोचित है, परन्तु तुझे धर्म का ज्ञान नहीं है । मुझ निरपराधी की हत्या करके तू अब कैसे सभ्य समाज में मुंह दिखाएगा ? अरे महात्मा दशरथ का बहुत प्रताप मैंने अपने पिता देवराट् इन्द्र से सुना है। उन महात्मा दशरथ के तेरे जैसा विश्वासघाती पुत्र उत्पन्न हुआ ? अरे , तूने सुग्रीव के हित के लिए मेरा वध किया ! तू यदि अपना अभिप्राय मुझसे कहता तो मैं तेरी अभिलाषा तुरन्त पूरी करता । " बालि के ये वचन सुन राम ने कहा - “ अरे बालि , तुझे धर्म -अर्थ का यथार्थ ज्ञान नहीं है। जान रख कि इस पृथ्वी पर इक्ष्वाकु - वंशियों का अबाध शासन है। तूने अपने विनीत छोटे भाई के प्रति अन्यायाचरण किया इसी से मैंने तुझे दण्ड दिया । तेरे जैसे अपराधी का वध छिपकर करने में दोष नहीं । हम आर्यजन ओट में होकर ही पशुओं का आखेट करते हैं । तू निर्बुद्धि भी पशु है । " इसी समय अंगद का हाथ थामे तारा आकर विलाप करती हुई धड़ाम से बालि के ऊपर गिर पड़ी और बोली - “ हे वीर , उठो । भूमि पर क्यों पड़े हो ? अपने अनुकूल पर्यंक पर शयन करो। अरे ! तुमने तो धर्मराज्य स्थापित कर इस किष्किन्धा को सम्पन्न किया था । अब इसकी श्री कहां रहेगी ? हाय , अब मैं कैसे इस दु: ख को सहन करूंगी? अरे , तुम्हारा यह पुत्र अंगद तुम्हें पुकार रहा है । तनिक इसकी ओर तो देखो। अरे , तुम अपने इस प्राणाधिक पुत्र को छोड़ कहां जा रहे हो ? ” तब हनुमान् ने आगे बढ़कर कहा - “ हे रानी, अब इस प्रकार शोक करने से क्या लाभ है ? जो मनुष्य स्वयं अपने दु: ख से दु: खी है, वह दूसरे पर क्या दया करेगा ? तुम्हारा पुत्र अंगद तुम्हारे पास है, तुम शोक त्याग, इसका पालन करो और भविष्य में जिससे तुम्हारा कल्याण हो वही काम करो। यह जीवन - मरण तो कर्म के साथ लगा ही है। महाराज सुग्रीव सहित हम सब वानर और तुम्हारा पुत्र अंगद तुम्हारी सेवा में उपस्थित हैं । फिर तुम अनाथ कहां हुईं ? अब इस पृथ्वी का पालन अंगद करेगा। अत : राजा बालि का संस्कार कर अंगद का राजतिलक करो। " ___ तारा ने यह सुनकर कहा - “ अरे हनुमान्, यह जो पुण्य पुरुष भूमि में पड़ा है, इसके सामने सौ अंगद भी न्यौछावर हैं । अब अंगद इस वानरराज्य का स्वामी नहीं बनेगा । राज्य के स्वामी तो अब सग्रीव ही हैं । अब वही राज्य संचालित करें , जिसके लिए उन्होंने भाई का वध किया । मेरे लिए तो अब यही स्थान श्रेष्ठ है, जहां वानरराज रक्त से भरे लेटे हुए हैं । " । तारा के ये वचन सुन बालि बड़े कष्ट से श्वास लेता हुआ बोला - " सुग्रीव, जो होना था , वह हुआ । अब मैं इस लोक से जा रहा हूं । पर मेरे इन अन्तिम शब्दों को याद रखना । यह अंगद मेरे प्राणों का प्यारा है, इसका ध्यान रखना । अब द्वेष - भाव से क्या ? तुम मेरे प्रिय
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