पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३५८

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94. अभिगमन समुद्र - तट पर पहुंच हनुमान् ने वज्र - गर्जना की , जिसे सुनकर सब वानर उत्सुक हो यह तो मारुति की गर्जना है कहकर समुद्र - तट की ओर भागे । उन्होंने रक्तवस्त्र हवा में हिला -हिलाकर अपनी उपस्थिति का संकेत किया ज्यों ही उन्होंने हनुमान् को समुद्र- तीर पर सिकता पर बैठे देखा , वे जोर - जोर से हर्षनाद करते हुए उनके निकट पहुंचे और उन्हें घेरकर उनका कुशल पूछने लगे । मारुति ने प्रसन्नवदन वृद्ध जाम्बवान् और अंगद को अभिवादन करके कहा - “भाइयो , मिथिलेशकुमारी सीता का मुझे दर्शन हो गया । " _ यह सुनते ही वानरवृन्द हर्ष से उन्मत्त हो गए। सबने मिलकर हनुमान् का अर्घ्य पाद्य से सत्कार किया । स्नान , भोजन और विश्राम से निवृत्त हो , सब उन्हें घेरकर बैठ गए । सभी समाचार सुनने को उत्सुक हो रहे थे। मारुति ने एक - एक कर लंका की सारी ही अघट घटनाएं कह सुनाईं। अन्त में कहा - “ मैं मैथिली सीता को असहायावस्था में भयानक राक्षसियों के पहरे में छोड़ आया हूं । वे अपनी वेणी भी नहीं गूंथती हैं । उनके केशों की जटाएं बन गई हैं । उपवासों से वे अति दुर्बल हो गई हैं । वे हर समय श्री राम का नाम रटती हैं । सो हे वानरश्रेष्ठो , श्रीराम की कृपा और आप सबकी शुभकामना से मैंने वानरपति सुग्रीव का यह कार्य सिद्ध कर दिया । अब आप महानुभाव शेष कार्य सफल करें , क्योंकि आप हर तरह समर्थ हैं । " हनुमान् के ये वचन सुनकर यूथपति युवराज अंगद ने कहा - “ हे मारुति , तुमने अनहोना कार्य किया है। बल और पराक्रम में पृथ्वी पर तुम्हारे समान दूसरा नहीं है । तुमने हम सभी की प्राणरक्षा कर ली तथा मर्यादा रख ली । अब यह विचार करना चाहिए कि हमें आगे क्या करना होगा। " हनुमान् ने कहा - " सुनो , हम सब कुछ करने में समर्थ हैं । आप यदि ठीक समझें तो हम सब लंका चलें और रावण को मार लंका का विध्वंस कर सीता को श्री राम की सेवा में ले चलें । भावी कार्यक्रम वयोवृद्ध जाम्बवान आदि की सम्मति पर निर्भर है । आप लोग सम्पूर्ण शास्त्रों और शस्त्रों की विद्या के ज्ञाता हैं । पराक्रमी और समर्थ हैं । सम्पूर्ण राक्षसों का हनन करने में तो अकेले युवराज अंगद ही यथेष्ट हैं । फिर महात्मा नील हैं , मैन्द हैं , द्विविद हैं । पृथ्वी पर देव, दैत्य , गन्धर्व, नाग , यक्ष इनमें कौन ऐसा है जो हम वीरों से टक्कर ले सके ? मैं तो अकेला ही समूची लंका को जलाकर छार कर आया हूं। हमारे लिए रावण को मारकर सीता का उद्धार करना क्या कठिन है! मैं अशोक वन में बैठी शोकविदग्धा सीता को बहुत बहुत आश्वासन दे आया हूं और उनके वध करने की जो अवधि रावण ने नियत की है, उसमें अब बहुत कम काल शेष है । " ____ मारुति के ये वचन सुनकर अंगद ने कहा - “ठीक है, आप जैसे वीरों के रहते हमें श्री राम के सम्मुख चलकर यह कहना कि हम भगवती सीता के दर्शन तो कर चुके , पर साथ न ला सके , हमारे पराक्रम पर लांछन ही रहेगा । इसलिए, वीरो , चलो ! अभी लंका चलें और