पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३६३

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96. अभियान सुग्रीव ने कूच के नगाड़े बजवा दिए । सबसे आगे सेनापति नील अपने अग्रगामी दल को लेकर चला । सुग्रीव ने कहा - “ सौम्य , तुम पथ -प्रदर्शन करो, पथपरिष्कार करो , दुर्गम स्थल को गम्य बनाते चलो । ऐसे मार्ग का परिशोध करो, जिसमें यथेष्ट जल - फल - मूल आहार प्राप्त होता जाए । सन्निवेश की सुविधाएं हों । शीतल जल और मधु यथेष्ट मिल सके। शत्रु मार्ग में आहार को दूषित न कर सके । आस - पास की दिशाओं की सुरक्षा का भी ध्यान रखो। मार्ग के गढ़े, गहर दुर्ग, वन सभी का परिष्कार करो। स्थान- स्थान पर चौकियां स्थापित करो। पथ -प्रदर्शकों के यूथ बनाओ। सावधान रहो कि आगे चलने पर पीछे से शत्रु के आक्रमण की आशंका न हो । ” नील के यूथ शत - सहस्र दल बनाकर अपने - अपने कार्य करते आगे चले और उनके पीछे समुद्र के समान वेगशाली वानरों की अथाह सैन्य चली । पर्वताकार गव , गवय और गवाक्ष अपने यूथ ले आगे बढ़े। सेनानायक ऋषभ वानर - सैन्य के दक्षिण पक्ष की रक्षा करते चले । मत्त गजराज के समान दुर्जय गन्धमादन सेना के वाम पाश्र्वरक्षक बनकर चले । सेना के मध्य भाग में ऐरावत के समान हाथी पर श्री राम चले । उनके आगे-पीछे अंगरक्षक, दायें - बायें हनुमान्, लक्ष्मण तथा युवराज अंगद चले – उनके पीछे वानरराज सुग्रीव मन्त्रियों और सेनापतियों सहित । सबके अन्त में सेना के पृष्ठ भाग की रक्षा करते महा -विक्रम ऋक्षराज जाम्बवान्, सुषेण और वेणदी वानर - यूथपति अपने यूथों सहित चले । सम्पूर्ण सेना का अधिनायक सुग्रीव सेनापतियों , गुल्मनायकों को आज्ञा देता चला । प्रतापी नील अपने साथ प्रजंघ, वलीमुख, जम्भ और रक्षक को लिए बड़े संयम और चातुर्य से आगे - आगे राह बताते तथा पथ - प्रदर्शन करते जा रहे थे। सुग्रीव की कठोर आज्ञा थी कि मार्ग में नगर, उपवन , सरोवर और ग्रामों की हानि न होने पाए। इस प्रकार वानरी सेना सारी पृथ्वी को ढकती चलकर सह्याद्रि गिरि पर जा पहंची। उस समय सुग्रीव ने राम के समक्ष आ निवेदन किया - " राघवेन्द्र , आपकी जय हो ! मुझे पृथ्वी और आकाश में शुभ शकुन दीख रहे हैं , जो आपकी मनोरथ - सिद्धि के सूचक हैं । देखिए, सेना के पीछे अनुकूल सुखद समीर बह रहा है । विहंग मधुर स्वर से कलरव कर रहे हैं , दिशाएं प्रसन्न हैं , सूर्य निर्मल है, शुक्र आपके पृष्ठ भाग में चमक रहा है, ब्रह्म राशि निर्मल है । सप्तर्षि - मण्डल प्रकाश - युक्त है । त्रिशंकु देदीप्यमान है । विशाखा नक्षत्र देदीप्यमान है । जल शीतल और मधुर हो गया है, वायु सुगन्धित हो मन्द - मन्द बह रही है। ऋतु के अनुकूल पुष्पों से दिशाएं सुशोभित हैं और सम्पूर्ण वानरी सैन्य व्यूहबद्ध आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही है। " श्री राम ने प्रसन्नमन समस्त कटक को सह्याद्रि गिरि पर विश्राम करने का आदेश दिया । आदेश पा वानर प्रसन्न हो -होकर शिलाखण्डों पर बैठ चन्दन की सुगन्ध से सुवासित वायु का आनन्द लेने लगे। पर्वत -शिलाओं पर उत्पन्न केतकी, माधवी , वासन्ती, कुन्द, चिरु ,