रक्षा के लिए उसने क्या उपाय कर रखे हैं ? " श्री राम के ये वचन सुनकर हनुमान ने कहा - “ हे रघुवंशमणि , लंकावासी राक्षस अति सम्पन्न हैं । वहां बड़े- बड़े मस्त हाथी हैं , विशाल रथ हैं । राक्षस भट बड़े शूर हैं । वे यत्न से लंका की रक्षा रात -दिन करते हैं । लंका में चार विशाल द्वार हैं । उनमें अत्यन्त दृढ़ फाटक लगे हैं , जिनमें मोटी - मोटी अर्गलाएं लगी हैं । उन अर्गलाओं पर बड़े विशाल उपल अस्त्र लगे हैं , जो शत्रु - सेना को रोकने के लिए हैं । लंका के चारों ओर स्वर्णिम चहारदीवारी है , जिसमें बीच-बीच में मणि , मूंगा और मोती लगे हैं , चहारदीवारी की चारों ओर ठण्डे जल की बड़ी भयानक गहरी खाई है, जिसमें बड़े- बड़े मगरमच्छ भरे पड़े हैं । उस खाई के पार द्वार तक पहुंचने के लिए बड़े-बड़े विस्तृत मार्ग हैं , जिनमें यन्त्र लगे हैं । उन यन्त्रों द्वारा शत्रु- सेना को खाई में गिरा दिया जाता है । इन संक्रमों में एक तो बड़ा ही दुर्भेद्य है। वह सोने के बने खम्भों और वेदियों से सुशोभित है । वहां बहुत - सी सेना रहती है , जिसकी देख - भाल सेनापति करते हैं । “ रावण स्वयं सावधानी से सेना का निरीक्षण करता रहता है। लंका पर आक्रमण देवों के लिए भी दुरूह है। उसके चारों ओर तो दुर्लघ्य समुद्र , खाई, वन , पर्वत और दुर्भेघ चहारदीवारी हैं , जिसने उसे अजेय बना दिया है । वहां नौका भी नहीं जा सकती । ऐसी ही यह दुर्गम लंका है , जो त्रिकूट -शिखर पर बसी है । दस - दस हजार भयंकर राक्षस सुभट हाथों में शूल लेकर प्रत्येक द्वार की रखवाली करते हैं , जिनकी सहायता के लिए चतुरंगिणी चम् सदा तैयार रहती है। किन्तु मैंने संक्रमों को तोड़ दिया , लंका को जला डाला , वहां की व्यवस्था भंग कर दी और भय एवं आतंक का राज्य स्थापित कर आया हूं। अब तो हमें समुद्र पार करने ही का प्रयास करना है, फिर तो लंका विनष्ट ही समझिए। अंगद , द्विविद , मैन्द , जाम्बवान्, पनरु , नल , नील , आदि महारथ वानर - यूथपति तथा वानरराज , सुग्रीव, इस दुर्जय दुर्धर्ष लंका के सब कोट, परकोट , खाई को नष्ट कर सीता का उद्धार करेंगे। इसमें तनिक भी संदेह नहीं। ” मारुति के ये वचन सुन राम कुछ देर विचारमग्न रहे । फिर खड़े होकर उन्होंने जल्द- गम्भीर स्वर में कहा - “ हे वानरेन्द्र, हम सब राक्षसों सहित लंका का विध्वंस करेंगे । सूर्यदेव अब मध्याकाश में पहुंच चुके , आज उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र है। कल चन्द्रमा क्षीण नक्षत्र पर होगा । इसलिए हमें आज ही विजय -यात्रा करनी है। तो अभी सेना को प्रस्थान की आज्ञा हो ! "
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