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कोई स्त्री मुझे तुच्छ समझे और वह जीती रहे , यह संभव है! मेरी मर्यादा है, मैं सुकुल उत्पन्न वैश्रवण पौलस्त्य हूं , मुनिकुमार हूं , सप्तद्वीपाधिपति महिदेव हूं , जगज्जयी हूं । इस शत्रु -पत्नी को मेरी शय्या पर आकर स्वेच्छा से अपना शरीर और मन मुझे अर्पित कर कृतार्थ होना चाहिए । नहीं तो अवधि के बाद अवश्य मेरे रसोइये उसका हृदय मेरे कलेवे के लिए पाक करेंगे। जाओ, उस मानवी को सूचित कर दो । "