98 . राजसभा वानरों के दल - बादल समुद्र - तट पर आ पहुंचे हैं , इसकी सूचना चरों ने रावण को दी । रावण ने आज्ञा प्रचारित की - सब सभासद् सभा भवन में उपस्थित हों । राक्षस संदेशवाहक रावण का आदेश लंका के भवनों में , शयन - गृहों में , क्रीड़ा -स्थलों में , उद्यानों में जा -जाकर राक्षस- सामन्तों और सभासदों को सुना आए। सभासद् शस्त्र और वस्त्र से सज्जित हो , राजाज्ञा पा कोई रथ पर, कुछ हाथियों पर, कुछ पालकियों पर चढ़कर राजसभा को चले । कुछ पैदल ही चल दिए । सभासदों की सवारियों से लंका के राजपथ भर गए। चहल पहल से, लोगों की बातचीत से मुखरित हो उठे । उन्हें देखने को उत्सुक नागर जहां-तहां भीड़ बनाकर खड़े हो गए । पौर- वधुएं झरोखों से झांकने लगीं । । रक्षेन्द्र भी सोने की जाली और मणि - मंगों से सुशोभित रथ पर आरूढ़ हो सभा भवन को चला । ढाल- खड्ग धारण करने वाले अनेकों शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित राक्षस उसके आगे- आगे चले । अनेक बलवान् राक्षस उसे दायें -बायें और पीछे से घेरकर चले । रथवाले रथों पर , हाथीसवार हाथियों पर , घुड़सवार घोड़ों पर , हाथ में तोमर, गदा , शूल लेकर रावण के साथ चले । उस समय सहस्रों भेरियां बज रही थीं ,जिनसे गम्भीर शब्द होता था । आगे - आगे बन्दीजन स्तुति गाते जा रहे थे। इस प्रकार अपनी स्तुति सुनता रावण सभा भवन में जा पहुंचा। उसके वहां पहुंचते ही तुमुल शंखध्वनि हुई । रावण के रथ पर चन्द्रमा के समान श्वेत छत्र शोभायमान था । उसके दोनों ओर स्फटिक मणि के निर्मित स्वर्ण मंजरियों से युक्त चंवर और पंखे झले जा रहे थे। इधर - उधर प्रमुख राक्षस सुभट , सभासद् सिर झकाए खडे थे । इस प्रकार अमिताभ रावण उस अपर्व सभा में जा सोने की वेदी पर जो स्फटिक मणि के फर्श पर बनी थी और जहां रत्नजटित सुनहरी काम का बिछावन बिछा था , रखे रत्नसिंहासन पर बैठ गया । इस भवन के रक्षक छ: सौ पिशाचों ने भूमि में गिर रक्षेन्द्र को प्रणाम किया । अन्य सभासद् भी रक्षेन्द्र को प्रणाम कर - करके चौकी, आसन और आसन्दियों पर बैठ गए । ये सब सभासद् प्रत्येक कार्य की सुगम से सुगम व्यवस्था करने में कुशल और समुचित - समयानुकूल मत देने में निपुण थे। इसी समय राक्षसेन्द्र विभीषण, कुम्भकर्ण और युवराज मेघनाद भी अपने - अपने श्रेष्ठ घोड़ों के स्वर्णरथों पर बैठ सभा में आ अपना नाम कह रक्षेन्द्र के चरणों में प्रणाम कर अपने आसन पर आ बैठे। रावण के आठों मंत्री भी अपने - अपने आसनों पर बैठ गए। विविध - मणि - माणिक्य -हीरकजटित बहुमूल्य वस्त्रों को धारण किए, अगरु, चन्दन और पुष्प मालाओं की सुगन्ध से सभा - भवन को सुरभित करते हुए वे चतुर और सभ्य सभासद् सभा की शोभा बढ़ाने लगे । उनमें न तो कोई जोर - जोर से चिल्लाकर बोलने वाला था - न असत्यवादी। सभी राक्षस अत्यन्त पराक्रमी और शूरवीर थे। वे सभी रावण का मुंह ताक रहे थे । इस प्रकार उन महाबली शस्त्रधारी मेधावी सभासदों के बीच में बैठ रावण
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