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आपने मुझे कठोर वचन कहे हैं । हतभाग्य पुरुष हितकारी वचन नहीं सुनते । अप्रिय और हितकारी बात कहने और सुनने वाले दोनों ही दुर्लभ हैं । शोक है कि आप विनाशक कालपाश में बंध चुके हैं । हतायु पुरुष पथ्य को नहीं देखता । ऐसा होता ही है। काल के वशीभूत होने पर बड़े- बड़े यशस्वी जगज्जयी प्रतापी शस्त्र - शास्त्रों के ज्ञाता भी मूढ़वत आचरण करते हैं । आपकी आज्ञा मानकर मैं जाता हूं । आप अपने इन हितैषी राक्षसों सहित लंका की रक्षा कीजिए। आपका कल्याण हो ! ” _ इतना कहकर विभीषण तुरंत उठकर अपनी भीम गदा हाथ में ले सभा - भवन से चल दिए । उनके पीछे ही उनके चारो मंत्री भी उठकर सभा - भवन से बाहर हो गए।