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स्थापना की और अब लक्ष्मण और सुग्रीव समय नष्ट न कर तुरन्त ही सेना के व्यूह और यूथों की रचना में लग गए। उस समय समुद्र - तीर पर प्रभंजन वायु चल रही थी । मस्त हाथी के समान वृक्ष झूम रहे थे। सुहावनी संध्या के रक्ताम्बर विश्व पर अपनी आभा दिखा रहे थे। राम ने लक्ष्मण और सुग्रीव की ओर देखकर कहा - “ अब वह काल उपस्थित हो गया है, जब भयंकर राक्षसों और बलवान् वानरों के मांस और रुधिर से पृथ्वी आच्छादित हो जाएगी । सब कोई सावधान रहें ! हम भोर ही में लंका पर आक्रमण करेंगे। अब विलम्ब का कुछ काम नहीं। "