" रावणस्य अनुजोऽह तेन अवमानितोऽस्मि , अतः सर्वभूतानां शरण्यं भवन्तं शरणमागतः। लंका मया परित्यक्ता धनानि मित्राणि चापि , मे राज्यं , जीवितं सुखानि च भवद्गतं हि । ” राम के नेत्र अश्रुसिक्त हो गए। उन्होंने विभीषण को उठाकर हृदय से लगाया, फिर लक्ष्मण की ओर देखकर कहा " वत्स सौमित्र, समुद्राजलमानय ! तेत चेमं विभीषण रक्षसां राजानं महाप्राज्ञमभिषिऽच । ” लक्ष्मण ने उठकर कहा “ यथाज्ञापयत्यार्य:! " लक्ष्मण ने विधिवत् समुद्र- जल से विभीषण का अभिषेक किया । सग्रीव और वानर - यूथपतियों ने एक स्वर से कहा - “ साधु , साधु ! " बानर - सैन्य ने पुकार लगाई- " राक्षसेन्द्र विभीषण की जय हो ! ” “ अनुगृहीतोऽस्मि ! ” विभीषण ने गद्गद- कण्ठ हो बद्धाञ्जलि कहा। राम ने बाहु उठाकर विभीषण को आसन देते हुए कहा “ एहि रक्ष : पते , मनोरथं मे पूरय । कथ नु वरुणालयं सागरमक्षोभ्यं तराम। " राघव , घोरेऽस्मिन्वरुणालये सागरे अबध्वा सेतुं सेन्द्रैः सुरासुरैरपि लङ्का नासादयितुं शक्या । ” इस पर सुग्रीव ने कहा - “ अयं महोत्साहः नलो नाम विश्वकर्मतनयः एष सेतुं करोतु । ” नल ने खड़े होकर कहा - “ समर्थश्चाप्यहं सेतुं कर्तुम्। ” “ तदद्यैव वानरपुङ्गवा: सेतुं बध्नन्तु । ” सुग्रीव ने आज्ञा दी और सहस्रों वानर हर्षोत्फुल्ल हो वेग से सेतु -निर्माण में जट गए। नल ने अत्यन्त बुद्धिमानी से सारी योजना तैयार की । सैकड़ों वानर तो शाल , अश्वकर्ण, बांस , धव, कुटज , अर्जुन , ताल , तिनिश, विल्व, सप्तपर्ण, तिलक, कर्णिकार, आम , अशोक आदि वृक्षों के भारी - भारी लट्टे काटने - छांटने में जुट गए। सैकड़ों वानरों ने उन कटे हुए लट्ठों को छिछले जल में गाड़ना और दृढ़ रस्सी से बांधना आरम्भ कर दिया । बहुत वानर बड़े- बड़े पत्थरों की चट्टानों को लुढ़काकर जल को पाटने लगे। इस प्रकार देखते - ही देखते सहस्रों वानरों के महदुद्योग से समुद्र पटने लगा । कुछ शिल्पी सूत लेकर सेतु की नापतौल करने लगे । कुछ लोहे की शृंखलाओं को हाथी के समान शिलाओं में बांधने अटकाने लगे। समुद्र के जल में पत्थरों के गिरने, कारीगरों के द्वारा ठोक -पीट करने और हजारों वानरों के बोलने से समुद्र का वातावरण कोलाहल से आपूर्यमाण हो गया । देखते ही - देखते चौदह योजन सेतु तैयार हो गया । इसके बाद तेईस योजन पुल तैयार कर सेतु को भूगर्भस्थ सुवेल पर्वत - शृंखला से मिला दिया गया । इसके आगे भूगर्भस्थ चट्टानों के कारण कार्य सुगम था , जो शीघ्र ही सम्पन्न हो गया । महाप्राज्ञ नल के इस महत्कर्म की श्री राम ने भूरि - भूरि प्रशंसा की । सबसे प्रथम गदा - पाणि विभीषण अपने मन्त्रियों सहित उस पार उतरकर , भूमि पर गए। इसके बाद अंगद , हनुमान् और सुग्रीव से रक्षित महाविक्रम राम , लक्ष्मण और फिर सब कटक। युवराज अंगद ने फूल , मूल , जल आदि का सुवास देख उपयुक्त स्थान पर कटक की
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