पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३७८

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सिंहासन पर विराजमान रहते ही राम ने कुलद्रोही विभीषण को लंकाधिपति- पद पर अभिषिक्त कर दिया है । अब वह गदापाणि विभीषण सारे ही वानर - कटक में रक्षपति कहाता है । इन सब अमितबल पराक्रमशील यूथपतिथों, यूथपों और सेनापतियों तथा असंख्य योद्धाओं के अतिरिक्त दिव्यास्त्रों के प्रयोक्ता राघवेन्द्र हैं , जिनके जैसा हस्त - लाघव , अस्त्र -सिद्धि और रण - धैर्य पृथ्वी पर दूसरे नर -पुङ्गव का नहीं है । __ " सुग्रीव ने बड़े ही चातुर्य से अपने सेनानायकों के साहचर्य से गरुड़ -व्यूह बनाया है , जिसके वाम पक्ष पर गद्र का पुत्र जाम्बवान् और उसका भ्राता ऋक्षराज धूम्र है । महावीर सुषेण और चन्द्रपुत्र दधिमुख दक्षिण पक्ष पर हैं । मैन्द और द्विविद पृष्ठरक्षक हैं । गज, गवाक्ष , गवय , शरभ और गन्धमादन ये पांच यमपुत्र चञ्चु भाग में अवस्थित हैं । उदरस्थली में सुग्रीव और विभीषण - सहित हनुमन्त - रक्षित महातेज राम हैं । इस प्रकार राम समुद्र के दक्षिण तीर पर पड़ाव डालकर अवस्थित हैं । " शुक , सारण के सारगर्भित वचन सुनकर रावण ने गरजकर कहा - “ को हि नाम सपत्नः , सर्वलोकभयादपि न सीतामहं दद्याम्। यदि देव - गन्धर्व- दानवा अपि मामभियुञ्जीरन्न मां सतरे जेतुमर्हन्ति । ” उसने अपनी समूची राक्षस सैन्य को सन्नद्ध होने की आज्ञा दे दी । समस्त मंत्रियों और सेनापतियों को सभाभवन में बुला भेजा । लंका के प्रत्येक दुर्ग , कोट , कंगूरों पर रखे धौंसे बज उठे , सहस्र तूणीर गगनभेदी निनाद करने लगे । भयानक भेरी - नाद से गगन मण्डल थर्रा उठा । हाथी सजने लगे , घोड़ों पर कवच और वज्र चढ़ाए जाने लगे । सहस्रों अश्वारोही अस्त्र - शस्त्र चमकाते लंका के राजपथ पर चारों ओर से सिमट -सिमटकर आकर जुटने लगे। सारे ही राजपथ सैनिकों से भर गए। लंका में भीति , व्याकुलता और आशंका व्याप गई। चारों ओर उस वानर की चर्चा होने लगी , जिसने लंका जलाई है । अब तो अनगिनत वानरों की सेना आई है । अब क्या होगा ? लंका के सब रास- रंग , पानगोष्ठी , कारोबार , व्यापार बन्द हो गए । धनपति अपने धन- रत्न भूमि में छिपाने लगे । कुलवधुएं अपने प्रिय पतियों को युद्ध का बाना सजा रणस्थली में जाता देख पछाड़ खाकर गिर पड़ीं । माताओं ने पुत्रों को खड्गहस्त युद्ध में जाते देख अश्रुविमोचन किया । सभी कहने लगे - “ कैसी यह दुर्भागी सीता है, जो सम्पूर्ण लंका के प्राणों का संकट आ बनी है । कैसी इस महामति महिदेव की दुर्मति हुई है कि इसने असंख्य देवाङ्गना सुन्दरियों के रहते इस स्त्री के लिए सारी ही राक्षस जाति पर संकट और मृत्यु की छाया ला दी है। " इसी समय वानरी सैन्य में रण - भेरी बज उठी । हजारों शंखों, दन्दभियों तथा भेरियों के भीषण रव से लंका हिल उठी । रक्षपति जगज्जयी रावण किसी भय से क्षण- भर को अवसन्न हो गया ।