पुष्प , रत्नाभरण धारण कर, अपनी प्रियतमा रेणु को उत्तर कुरु के मनोरम प्रदेश में उसका मन बहलाने और उसके साथ विहार करने के लिए ले गया । आजकल का कुर्दिस्तान आरमीनिया के नीचे का प्रदेश ही उन दिनों उत्तर कुरु कहाता था और सूर्य विवस्वान् का श्वसुर त्वष्टा , जो विश्वकर्मा के नाम से भी विख्यात शिल्पी था , इस रियासत का स्वामी था । इसकी राजधानी का नाम वन था । सूर्य के उस तेजस्वी अश्व को देख रेणु बहुत प्रसन्न हुई और स्वयं उस पर सवार होकर वन -विहार करने लगी । विवस्वान् हंस -हंसकर उसे चिढ़ाने के लिए अश्विनी - अश्विनी कहकर पुकारने लगे। यहीं उत्तर कुरु में विहार करते हुए उसने फिर दो जुड़वां बालकों को जन्म दिया , जो आगे चलकर अश्विनीकुमार के नाम से विख्यात हुए और बड़े वीर योद्धा, चिकित्सक तथा ऋषि हुए । ये अत्यन्त रूपवान् थे। इन्होंने करन्ध्र , वय और वशिष्ठ को अपना मित्र बनाया । सुदास को उनकी स्त्री सुदेवी प्राप्त करने में सहायता की । अन्धे और लंगड़े परावृज को चंगा किया । विस्पला की टूटी हुई टांग अच्छी कर दी । बद्धमती को सोने का हाथ लगा दिया । ऋज्नाश्व के नकली नेत्र लगाए। रेमा , बन्दन , कण्व , अन्तक, मज्यु, सुचन्त , पृश्निगु , अत्रि , श्रेतर्य, कुत्स , न्यर्य, वसु , दीर्घश्रवस , औशिज , कक्षीवान्, रसा , तृशोक , मान्धाता, भरद्वाज , अतिघिग्व , दिवोदास , कशोजु , तृषदस्यु , वन , उपस्तुत , कलि , व्यस्व , पृथुराजर्षि, सपु , मनु , सर्यात् , विमद, आधिग्र , सूभर , ऋतस्तूप , कृशानु , पुरुकुत्स , ध्वशान्ति , पुरुषान्ति , अन्ध्रश्व च्यवन , आदि गण्य - मान्य जनों से मित्रता की । दस्युओं से युद्ध भी किए। ये दोनों अश्विनीकुमार कहाते थे, परन्तु इनके वास्तविक नाम नासत्य और दस्र थे। विवस्वान् के ज्येष्ठ पुत्र यम माता -पिता दोनों की अपने प्रति उपेक्षा के भाव से बहुत खिन्न हुए । अपने शुभाचरण से देवों में यह धर्मराज कहाने लगे थे। समर्थ होने पर ये अपने ताया वरुण के पास चले गए । उन्होंने इन्हें पितलोक का अधिपति और लोकपाल बना दिया और ये नरक नामक नगर बसा वहां रहने लगे । अपवर्त वर्तमान ईरान का एक प्रदेश था जो कलातनादरी के निकट था । आजकल इसे अवर्द या अविवर्द - दोज़ख कहते हैं । जिस समय यम ने वहां जाकर अपने नवीन राज्य की स्थापना की , उस समय से कुछ पूर्व ही महा जल -प्रलय हो चुका था । वहां के अधिकांश लोग उस जल - प्रलय में मर चके थे , इसलिए यम के राज्य को मृत्युलोक कहने लगे । इन्होंने प्राचीन ईरान और यूनान की ऋचाएं तैयार की । इन्होंने दक्ष प्राचेतस के कुल की दस कन्याओं को ग्रहण किया । इनकी एक पत्नी संध्या से सांध्य जाति के अग्रज हुए जो इतिहास में सीथियन प्रसिद्ध हुए । इन्हीं के वंश के नीप व पाल के वंशधरों ने मिस्र और यूनान में फैलकर मिस्र का प्रथम राजवंश 2188 ई. पू . में और असुरों का प्रथम राजवंश 2059 ई . पू. में स्थापित किया । आगे नीप वंश को जनमेजय ने विजित किया । समस्त असुर -प्रदेश में फैली हुई वसु , मरु , भानु, घोष , सांध्य , हंस , विश्वकर्मा, मनीषि , द्रविड़ , हूण , मंगोल , रमण, धर, हयताल आदि शाकद्वीपी जातियां यम के ही वंश की हैं । ये अपने पूर्वज तथा कुलदेव सूर्य की उपासक थीं । सूर्य ही को ये नृवंश का पूज्य पुरुष मानती थीं । कुशान - हयताल , जो इतिहास में व्हाइट - हुन और तुर्क बताए गए हैं , यम के ही वंशधर हैं । वसु के आठ पुत्र वसु कहाए। इनमें ज्येष्ठ का नाम धर था । धर का पुत्र रुद्र हुआ, जो देव - दैत्य - पूजित महाबली दुर्धर्ष देव हुआ । द्रविड़ और हव्यवाह, धर के ये दो और पुत्र हुए ।
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