ऋषभस्कन्ध और सुषेण तथा उनके पुत्रों को दो - दो बाण मारे तथा अंगद को अनेक बाणों से छेद डाला । वानर सैन्य में कोलाहल मच गया । चारों ओर से सिमट -सिमटकर वानर वानर यूथपतियों और राम -लक्ष्मण के चारों ओर आ जुटे । चारों ओर से बाणों का चक्र , वर्षा की बौछार की तरह वानर भटों को बींधने लगा । परन्तु बाण कौन कहां से बरसा रहा है, यह पता नहीं लगता था । राम ने दस यूथपतियों को ललकारकर शत्रु का पता लगाने का आदेश दिया । परन्तु वे सभी समर्थ यूथपति वानर बाणों से विद्ध क्षत -विक्षत हो झूम - झूमकर पृथ्वी पर गिरने लगे । राम-लक्ष्मण के भी सर्व देह में बाण बिंध गए । उनके शरीर से झर - झर रक्त झरने लगा। बाण निरन्तर आ - आकर बिंध रहे थे। अब चारों ओर से नागशरों ने राम लक्ष्मण को फांस लिया । वे अद्भुत नागबाण पाश की भांति हर ओर से उन्हें जकड़ने लगे। मार्मिक आघातों से जर्जर हो , नागपाश से बद्ध, अवश, रक्त और बाणों से भरे, दोनों राघव सिंह भारी -भारी श्वास लेते हुए मूर्छित हो भूमि पर गिर पड़े । यह देख विभीषण सहित सब वानर हाहाकार करने लगे। राम - लक्ष्मण को दस यूथपतियों सहित मृतक मान, हर्षोन्मत्त मेघनाद ने जोर से सिंहगर्जना की , जिससे राक्षस जय - जयकार करने लगे । मेघ के समान गर्जकर मेघनाद ने अदृश्य रहते हुए कहा - “ ये महाबली खरदूषण के हन्ता दोनों मानुष भ्राता यहां मेरे बाणों से मरे पड़े हैं । ” इतना कह , महाबाहु रावणि अट्टहास करके हंसने लगा : “ अरे राक्षस वीरो, देखो - देखो, हमारे शस्त्र से शरविद्ध दोनों भाई मर गए। अब तुम आनन्द करो। ” कूटयोद्धा रावणि से ऐसे वचन सुन हर्षोन्मत्त राक्षसों ने महानाद किया । राम मर गया - यह जानकर रावणि की रणक्षेत्र में पूजा की । इन्द्रजित् अरिंदम दोनों भाइयों को नि :स्पंद भूमि में पड़ा देख, उन्हें मरा समझ हर्ष से फूला हुआ लंका में चला गया । हर्षोल्लास से लंका झूम उठी । घर - घर बधाइयां बजने लगीं । वीरेन्द्र की बड़ाई शत - सहस्र मुख से हुई । पौरवधुओं ने उसपर लाजा -विसर्जन किया । सूत बन्दियों ने विरद गाई । रक्षेन्द्र लंकापति ने वीर पुत्र को हृदय से लगाया , आनन्दाश्रु से उसका शिर सिक्त किया । उस पुत्र से पुत्रवान् होने से अपने को सराहा ।
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