पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/३८४

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गए । तपन के साथ गज ,निकुम्भ के साथ नील , प्रघंस के साथ सुग्रीव और विरूपाक्ष के साथ लक्ष्मण का द्वन्द्व होने लगा। अग्निकेतु, रश्मिकेतु, मित्रघ्न और यक्षकोप ने सम्मिलित हो श्री राम को घेर लिया । मैन्द के साथ वज्रमुष्टि , द्विविद के साथ अशनिप्रभ , सुषेण के साथ विद्युन्मणि युद्ध करने लगे। इस प्रकार चारों ओर महारथियों का ऐसा द्वन्द्व मचा कि भूलोक थर्रा गया । इन्द्रजित् ने क्रुद्ध हो अपनी गदा का प्रहार अंगद पर किया । अंगद ने वार बचा अपनी गदा से एक ही प्रहार से इन्द्रजित् का रथ भंग कर दिया और सारथी - सहित घोड़ों को मार डाला । प्रजंघ ने सम्पाति को बाणों से बींध डाला । इस पर व्याकुल हो सम्पाति ने प्रजंघ को हाथों में उठाकर भूमि पर दे मारा । जम्बुमाली ने रथ पर आरूढ़ हो हनुमान् पर शक्ति फेंकी। शक्ति मारुति के वक्ष में लगी । मारुति ने प्रबल वेग से रथ पर चढ़ उसे उसी क्षण मार डाला। प्रतपन भीषण गर्जना करता हुआ नल पर झपटा और उसने बाणों के प्रहार से नल के शरीर को छेद डाला । नल ने तत्क्षण उसकी आंखें फोड़कर उसे अन्धा कर दिया । प्रघंस को इसी समय सुग्रीव ने मार डाला । विरूपाक्ष और लक्ष्मण का तुमुल बाण युद्ध हुआ । अन्त में लक्ष्मण के बाणों से विद्ध हो उसने प्राण त्यागे। अग्निकेतु , रश्मिकेतु, मित्रघ्न और यक्षकोप ने बाणों की मार से श्री राम को घेर लिया , परन्तु राम ने एक ही वार में चार अग्निबाणों के प्रहार से उन्हें मार डाला । मैन्द ने वज्रमुष्टि के रथ पर चढ़ उसे मुक्कों ही से मार डाला । निकुम्भ ने नील पर सौ बाणों की वर्षा की और हंसने लगा । नील ने उसका रथ तोड़ सारथी को मार डाला । अशनिप्रभ ने द्विविद को अपने तीखे बाणों से वेध दिया । द्विविद ने उसे आटे की भांति गंध डाला। विद्युन्माली और सुषेण का भीषण गदायुद्ध एक मुहूर्त तक होता रहा । अन्त में विद्युन्माली मुंह से खून थूकता हुआ भाग खड़ा हुआ । इस समय बारह योजन विस्तार में लंका के चारों ओर घनघोर युद्ध हो रहा था , जिसमें शक्ति , गदा, तोमर , बाण , खड्ग और शिलाओं का खुला प्रयोग हो रहा था । मरे हुए योद्धाओं, घोड़ों, हाथियों की लोथें रक्त - सागर में तैर रही थीं । सूर्यास्त हो गया , परन्तु दोनों ही ओर के योद्धा उसी प्रकार लड़ते रहे। संग्राम - भूमि बीभत्स हो उठी । उस दुष्पार अन्धकार में क्रोधोन्मत्त राक्षस वानरों का वक्ष चीर - चीर कर वहीं उन्हें खाने लगे। वानर भी भयंकर कोप कर हाथियों, घोड़ों, रथों , ध्वजाओं को विदीर्ण करने लगे । इससे लोमहर्षक समराङ्गण में रक्त की नदी बह चली । वह रात्रि काल - रात्रि के समान दुरतिक्रमा हो गई । अंगद ने भीम विक्रम से इन्द्रजित् का रथ तोड़ डाला, घोड़े मार डाले , सारथि को भी मार डाला । इस पर मायावी इन्द्रजित् रथ से कूद अंतर्धान हो गया । यह देख वानर हर्ष से चिल्ला उठे । सुग्रीव ने अंगद को हर्ष- गद्गद हो कण्ठ से लगा लिया । परन्तु इसी समय अकस्मात् अदृश्य रहकर मायावी मेघनाद ने राम -लक्ष्मण को घेरकर चौमुखी बाण -वर्षा से उन्हें ढांप लिया । दोनों राघव दिव्यास्त्रों से युद्ध करने लगे, पर इन्द्रजित् अदृश्य रहकर बाण -वर्षा कर रहा था । किसी अज्ञात दिशा से बाण आ - आकर उन्हें बींध रहे थे। इस प्रकार राम और लक्ष्मण का संकट सन्निकट देख अपने दोनों पुत्रों सहित सुषेण , अंगद, शरभ , मारुति , हनुमान् , द्विविद, मैन्द, नील और ऋषभस्कन्ध , ये दस यूथपति दोनों भाइयों को चारों ओर से घेर उनकी रक्षा करने लगे। पर महाबली इन्द्रजित् ने नौ बाणों से नील को , तीन -तीन बाणों से मैन्द और द्विविद को आहत कर दिया तथा पराक्रमी शरभ के हृदय में एक बाण मारा । वेगवान् हनुमान् को विद्ध कर अत्यन्त पराक्रमी