करते हो ! " ___ अब शची ने कहा - “ अम्ब, देवाधिदेव के ही संकेत से मेरे पिता ने दानव- वंशी होने पर भी देवेन्द्र को मुझे दिया । आप ही के आशीर्वाद की छाया में हम सम्पन्न हैं , निरापद हैं । किन्तु आपके आशीर्वचन की अवज्ञा करके उस दुस्सह दुरात्मा ने देवेन्द्र को बन्दी बनाया , देवेन्द्र को समूचे नृवंश के प्रतिनिधियों के सामने कन्धे पर तीर्थोदक रख उस अधम का ऐन्द्राभिषेक करना पड़ा । कैसे अब आप देवकुल का यह अपमान देख सकेंगी, अम्ब ? " हेमवती ने सब सुनकर कहा - “ परन्तु सुन , तेरे अनुरोध की रक्षा करने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है । देवाधिदेव राक्षस - कुल -रक्षक हैं । वे आज वृषभध्वज योग में कूटस्थ , दुर्गम गौरीकूट पर बैठे हैं । वहां तक जाना भी शक्य नहीं है । उनकी एकान्त साधना में विघ्न करना भी निरापद नहीं है। तू तो जानती ही है, संक्रुद्ध रुद्र के नि : श्वास से मकरध्वज मीनकेतु काम भस्म हो चुका है! ” “ तो यह तो और भी अच्छा है अम्ब , विरूपाक्ष देवाधिदेव यहां नहीं हैं , वे विकट शिखर पर कूटस्थ हैं । अब आप ही देवों का प्रिय कर दीजिए । हमें देवाधिदेव से क्या प्रयोजन है! हम तो आप ही के प्रसाद से सम्पन्न होना चाहते हैं । " ___ पौलोमी शची के ये वचन सुन हंसकर उमा ने कहा - “ अरी इन्द्रसखी, तू बड़ी वाचाल है । तभी तो देवराज तुझे देख ऐसा विमुग्ध होता है , जैसे ऋतुपति वनस्थल की कुसुम कुन्तला को देखकर मोहित होता है । " देवेन्द्र ने उमा की प्रसन्न मुद्रा देखकर कहा - “ अम्ब , देवकुल के अपमान का परिष्कार करो। मैं दास इसी आशा से आपकी शरण आया हूं । मातेश्वरी! जब दुरन्त तारक ने मुझे पराजित कर स्वर्ग हस्तगत कर लिया था , तब देवकुल -रक्षक कुमार कार्तिकेय को वृषभध्वज रुद्र ने नागसिद्ध धनुष और अक्षय तूणीर दिया था , उसी से कुमार ने दुर्जय तारक का वध किया था । वृषभध्वज रुद्र की कृपा से मेघनाद के पास भी वही महास्त्र है । इसी से वह दुरन्त राक्षस अदृश्य रहकर चतुर्मुखी बाण -वर्षा करता है । उसका वध संभव ही नहीं। अब अम्ब, कृपाकर मुझे कुमार का वही अक्षय तरकस दो , धनुष की अभेद्य सुवर्ण मण्डित ढाल दो और मृत्युञ्जय खड्ग दो , जिससे राम उस देव - वैरी दुरन्त मेघनाद का वध कर सकें । " देवराज इन्द्र का ऐसा अनुनय - अनुरोध सुन शरणागतवत्सला अम्बिका शैलबाला पार्वती ने महामाया को आज्ञा दी कि वह देवेन्द्र की इच्छा पूर्ण करे। महामाया ने वे जाज्वल्यमान शस्त्रास्त्र देवेन्द्र को ला दिए । इन्द्र ने वह कालधनुष हाथ में लेकर कहा - “ मुझ दास का यह रत्नधनुष इस दिव्य धनुष के सम्मुख तुच्छ है । यह महातेजस्कर खड्ग और सूर्यमण्डल के समान देदीप्यमान ढाल तथा कालसर्प की भांति नागशरों से भरा अक्षय तरकस पाकर मैं धन्य हो गया ! देवकुल पुनर्जीवित हो गया । " उमा हेमवती ने कहा - “ देवेन्द्र , तुम मेरे अभ्यागत हो , देवराट् हो , तुम्हारा विचार शुभ है, आर्यों और देवों का अप्रिय मैं भी सहन नहीं कर सकती । धूर्जटि क्रुद्ध भी होंगे तो मैं सहन करूंगी। तुम इन महास्त्रों को ले जाकर राम को दे दो । इन्हीं से कुमार कार्तिक ने तारक का वध किया था । इन्हीं से तुम्हारे चिरशत्रु मेघनाद का हनन होगा । परन्तु मैं तुम्हें कह देती हूं कि मेघनाद की वीरता मैंने देखी है। यह त्रिपुरारि का सम्पूर्ण रौद्र तेज धारण
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