मेरे प्रिय शिष्य रावणि ने भी कोई दुष्कर्म किया है ? " __ “ यह जानकी - हरण क्या दुष्कर्म नहीं ? " _ “ और सूर्पनखा के राज्य में रहकर उसी का बर्बरतापूर्वक अंगच्छेद करना दुष्कर्म नहीं है ? कहो तो , सूर्पनखा ने कौन - सा अपराध किया था ? उसने तो वैध स्वयंवर का प्रस्ताव किया था । " “ परन्तु एकस्त्रीव्रती राम ने उस कामचारिणी को स्वीकार नहीं किया । " " तो उस महाप्रतिष्ठ वंश की राजपुत्री के प्रस्ताव का उपहास क्यों किया ? लक्ष्मण के पास जाने का संकेत क्यों किया ? प्रस्ताव करने पर लक्ष्मण ने उस राक्षसबाला का अंग भंग क्यों किया ? यह सब तो अत्यन्त गर्हित हुआ । " “ पर इसमें सीता का क्या अपराध था ? सीता का हरण क्यों हुआ ? " “मैं तो उसका अनुमोदन नहीं करता। पर रावण को इसके लिए दोषी भी नहीं मानता। " " तो देव दाशरथि राम भी महावंशोद्भव है, वह मानवेन्द्र है। सीता के लिए उसका लंका पर अभियान न्याय्य ही है। " __ “ सो वह और रावण परस्पर निबटें । देवी ने क्यों उस पर अनुग्रह किया? " " केवल देवेन्द्र के अनुरोध से और सीता का दु: ख समझकर। " "जिससे वह कपटी देवेन्द्र अकंटक हो देवों सहित आनन्द से सोमपान करे , यौवनोन्मत्त अप्सराओं के नृत्य - गीत में मस्त रहे, आर्यों के यज्ञभाग का भोग करे और मनमाने दुष्कर्म करे! ” __ “ देव , प्रसन्न हों , सोमपान तो देवाधिदेव भी करते हैं । वह विजया सोम ला रही है, स्वर्णकलश में भरे , ऊनी छन्नों में छानकर। " रुद्र ने हंसकर उमा की ओर देखा। विजया ने सोम -पात्र उनके सम्मुख रखा। उमा ने पात्र में सोम लेकर धूर्जटि को देते हुए कहा - “ उस दास सोमपायी देवेन्द्र पर अब तो देवाधिदेव का अनुग्रह होना ही चाहिए। " धूर्जटि ने सोमपान करते हुए कहा - “प्रिये , जिसे तेरा अनुग्रह प्राप्त है, उसे किसका भय है ? तू देवेन्द्र और दाशरथि पर सदय है तो रह । पर मैं रावण पर कृपा करूंगा। मैं अभी लंका जाऊंगा। " इतना कह, और एक पात्र सोमपान कर , वृषभध्वज कैलासी अपना विकट शूल उठाकर चल दिए । उमा क्षण - भर स्तब्ध रहीं, फिर उन्होंने कुमार कार्तिक को बुलाकर कहा - “ पुत्र , तू मेरी आज्ञा से देवकार्य कर । देवेन्द्र के अनुरोध से मैं उस पर सदय हुई थी । मैंने दाशरथि राम को दिव्यास्त्र दे दिए थे, जिनसे वह महाबली दुर्जय रावण का हनन कर सके । अब कैलासी स्वयं रावण पर अनुग्रह कर शूलपाणि हो लंका गए हैं । वत्स , तू अभी देवलोक जाकर इन्द्र को इस देवाश्रय से सावधान कर दे। देवेन्द्र से कह कि पुत्र के मरने पर रावण रुद्र का आश्रय पाकर , पुत्र - शोक-विदग्ध , समर में प्रलयाग्नि प्रज्वलित कर देगा । देवेन्द्र स्वयं रुद्र, मरुत् , यक्ष और आदित्यों को साथ ले समर - भूमि में दाशरथि की सहायता करे । यदि देवेन्द्र
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४३७
दिखावट