पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४४२

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सूंघते और गाढ़ालिंगन करते हुए कहा- “ धन्य वीर धन्य , धन्य सौमित्रि धन्य , तेरी जननी सुमित्रा धन्य , तेरे कारण मैं तेरा ज्येष्ठ भ्राता भी धन्य हुआ । तेरा यश अमर रहेगा। " राम ने फिर विभीषण को अंक -पाश में बांधकर कहा - “साधु रक्षेन्द्र , असुकरं कर्म कीर्तिवर्धनं कृतम्। तुष्टोऽस्मि रामणेर्हि विनाशेन जितमित्युपधारयामि। " सहसा लंका सिंहनाद से हिल उठी । राम ने आतंकित होकर कहा - “ अरे , यह क्या हुआ ? क्या प्रलय होने वाली है ? यह प्रलयनाद कैसा है ? यह क्षण - क्षण में बिना अभ्र के विद्युत् कैसी चमक रही है ? लंका जैसे भूकम्प से बारंबार कांप रही है। घनी धूल के बादल उड़ - उड़कर सूर्य को ढांप रहे हैं । " विभीषण ने भय से पाण्डुमुख होकर कहा - "रघुमणि , राक्षसपति रावण पुत्रशोक से भस्म हो रहा है। वह युद्ध-साज सज रहा है । वीरों के पद - भार से पृथ्वी कांप रही है । यह राक्षस सैन्य गरज रही है । अब कैसे इस विकट संकट से बन्धु लक्ष्मण और कटक की रक्षा होगी ? यह देखिए - राक्षस गुल्मपति प्रलयनाद की भांति शृंगीनाद कर रहे हैं । अग्नि -वर्णवाले स्वर्ण- ध्वज रथ निर्घोष करते हुए बाहर आ रहे हैं । चतुरंगिणी सेनाओं के व्यूह सज रहे हैं । लंका के वीर इस प्रकार शस्त्रपाणि हो लंका से निकल रहे हैं , जैसे बांबी से काला सर्प निकलता है । उग्र उदग्र रथियों का सेनानायक है। वज्रपाणि इन्द्र के समान पराक्रमी वास्कल गजसेना का नायक है। महावीर अतिलोमा अश्वारोहियों का नायक है। भीमाकृति विडालाक्ष पादातिकों का अधिपति है । महादुर्मद दुर्मद पताकावाहक है। महाराज, यह उग्रचण्डा राक्षस - सेना लंका में युद्ध - सन्नद्ध हो रही है । अब हमें भी तत्परता से तैयार हो जाना चाहिए । आज प्रलय- युद्ध में जगज्जयी जगदीश्वर राक्षसेन्द्र रावण का आपको साम्मुख्य करना है। " राम ने चिन्ताकुल होकर कहा - “ तो मित्र, शीघ्र ही सब सेनानायकों को यहां बुला लाओ । अब इस दास की रक्षा देव ही करेंगे। ” विभीषण ने ज़ोर से शृंगी - नाद किया । अंगद , नील , हनुमान , जाम्बवन्त , गयंद, गवाक्ष , सुग्रीव आदि सब वानर - सैन्य - सेनानी, गुल्मपति आ - आकर राम को घेरकर बैठ गए। राम ने कहा - “ वीरगण, आज रावण पुत्र - शोक विह्वल हो काल - समर करेगा । तुम सब त्रिभुवनजयी शूर हो । युद्ध-साज सज इस विपद् में राम की रक्षा करो । मित्रो , अब तो लंका में एक रावण ही रथी बचा है। तुम्हीं ने अपने बाहु- बल से समुद्र को बांधा है । तुम्हीं ने अमितविक्रम कुम्भकर्ण का वध किया । तुम्हारे ही प्रताप से अजेय मेघनाद मारा गया । हाय ! रघु- वधू अब भी रावण के कारागार में बन्द है । वीरो , अब रावण को मार उसका उद्धार कर मेरे कुल और मान की रक्षा करो। ” । राम की आंखों में आंसू भर आए। सुग्रीव ने राम की आंखों में आंसू देखकर कहा - "रघुमणि , मैं आप ही के प्रताप से राजसुख भोग रहा हूं । सो महाराज, आज या तो मैं रावण को मारूंगा या स्वयं मरूंगा। आप चिन्ता क्यों करते हैं ? " ___ सहस्र - सहस्र उल्कापात की भांति वज्रध्वनि सुन सारी वानर - सैन्य स्तब्ध हो गई । राम ने व्यग्र भाव से पूछा - “ अब यह कौन- सी नई विपत्ति आई? अरे वीरेन्द्रो, शस्त्र ले - लेकर सन्नद्ध हो जाओ! " इस पर मातलि ने हंसकर कहा- “दाशरथि, प्रसन्न हों । आपकी सहायता के लिए