स्वयं वज्रपाणि देवेन्द्र ऐरावत पर आरूढ़ हो आए हैं । उनके साथ कुमार कार्तिक, सहदेव , सब रुद्र , मरुत् , आदित्य और गरुड़ हैं। " राम ने ससम्भ्रम कहा - “ हे राक्षसराज विभीषण, हे वानरेन्द्र सुग्रीव, चलो, आगे बढ़कर देवेन्द्र की अभ्यर्थना करें । अर्घ्य- पाद्य से उन्हें सत्कृत करें । ” राम , लक्ष्मण और सब वानर - यूथपति सेनापतियों ने सुग्रीव और विभीषण को संग लेकर देवेन्द्र और कुमार कार्तिकेय का अर्घ्य-पाद्य से सत्कार कर उनकी पूजा की । फिर राम लक्ष्मण ने बद्धांजलि हो देवेन्द्र और कुमार की परिक्रमा कर कहा “ अपने पूर्व पुरुषों के सुकृत से इस दास को इस विपत्ति में देव - पदाश्रय प्राप्त हुआ है । इससे मेरा कुल प्रतिष्ठित हुआ । मैं धन्य हुआ ! " देवेन्द्र ने हंसकर कहा - “ हे रघुमणि , तुम देवप्रिय हो , अब रथ पर रणसज्जा से सजकर बैठो । आज जगज्जयी रावण काल -समर करेगा। उसमें मैं मरुतों और देव - सैन्य सहित तुम्हारे पृष्ठ की और कुमार सब रुद्रों सहित तुम्हारे अग्र भाग की रक्षा करेंगे । " । वानर - सैन्य ने जय -निनाद से गगनमण्डल को कम्पायमान कर दिया । जुझारू बाजे बजने लगे। समस्त वानर - सैन्य व्यूहबद्ध खड़ी हो गई ।
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