पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४४५

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वानरों का राजा सुग्रीव तेरे मस्तक पर चरण रखकर यहां उपस्थित है। कह, क्या तू श्री राम की चरण - शरण आता है? " रावण ने क्रोधावेशित होकर कहा - “ अरे सुग्रीव, ठहर , तुझे अभी अग्रीव करता हूं । ” इतना कह उसने झपटकर सुग्रीव को पकड़कर भुजाओं में मसल डाला । परन्तु सुग्रीव ने उसके चंगुल से निकलकर रावण को रथ से खींच लिया । फिर कूदकर उसके वक्ष पर लात मारी। रावण ने सुग्रीव का पैर पकड़ उसे सिर से ऊपर घुमाकर दूर फेंक दिया । इतने में सहस्रों राक्षस शस्त्र ले - ले सुग्रीव पर टूट पड़े। सुग्रीव पर यह महासंकट आया देख वानर सैन्य में आतंक फैल गया । राम का संकेत पा तुरन्त ही जाम्बवान् , हनुमान् , अंगद , नल , नील , गयन्द, गुल्मपति राक्षसों को चीरते हुए वानरेन्द्र के निकट जा पहुंचे और उसे घेर अपने कटक में ले आए। राम ने सुग्रीव को छाती से लगाकर कहा - “वीरशिरोमणि , तूने यह कैसा दुस्साहस किया , मुझसे बिना ही परामर्श किए? राजा को ऐसा साहस नहीं करना चाहिए । भविष्य में ऐसा न करना । तेरे विपत्ति में पड़ जाने से तो मैं सिद्धि से विमुख हो जाऊंगा। यद्यपि तेरा बल अप्रमेय है, फिर भी तुझे प्राण -संकट हो जाता तो तेरे अभाव में स्वयं मैं भी जीवित न रहता। " सुग्रीव ने लज्जित होकर कहा - " राघव, दुरात्मा रावण को सम्मुख देख , मैं संयत न रह सका। " ___ इसी क्षण दोनों सेनाएं आमने -सामने आ गईं। राक्षस - सैन्य ने पर्वत के समान अचल वानर - सैन्य को देखा । वानरों ने कालमेघ के समान राक्षस- सैन्य को देखा। दोनों सेनाओं के तुमुल नाद से पृथ्वी कांपने लगी । काल सर्प के समान बाण छूटने लगे । उन्होंने आकाश मण्डल को छा लिया । दोनों ओर से भट खड्ग- शैल - शक्ति - शूल ले - लेकर एक - दूसरे पर पिल पड़े । एक महर्त के भीतर ही रणभूमि रक्त से भर गई । मित्र- शत्र का भेद भी न रहा । वीरों से वीर परस्पर गुंथकर लड़ने लगे । अंगद मृत्यु के समान वेग से गिरिशृंग के समान विशाल गदा लेकर नरान्तक पर पिल पड़ा । दोनों में घनघोर गदा -युद्ध हुआ । अन्त में गदा का करारा घाव खाकर रक्त - वमन करता हुआ नरान्तक भूमि पर गिर गया । नरान्तक को मरते देख महोदर ने धनुष-टंकार करते हुए अपना रथ आगे बढ़ाया । त्रिशिरा भी शूल हाथ में ले उसके पार्श्व में चला । उसके साथ ही वज्र भी । इन तीनों महारथियों को आता देख हनुमान् हुंकार करते आगे आए । महोदर ने मारुति को बाणों से ढांप लिया , परन्तु मारुति ने हठपूर्वक आगे बढ़ गदा से उसके घोड़ों और सारथि को मार उसका सिर चूर्ण कर दिया । महोदर को रथ से गिरते देख क्रोध से फुफकारता हुआ त्रिशिरा महाकाल के समान शूल ले हनुमान् पर टूट पड़ा । मुहूर्त भर हनुमान् और त्रिशिरा में लोमहर्षक युद्ध हुआ । अन्त में मारुति ने उसे अश्व से गिराकर उसका सिर चूर्ण कर दिया । तब कुम्भकर्ण के दोनों पुत्र कुम्भ और निकुम्भ राक्षसों के गुल्मों को साथ लेकर प्रचण्ड युद्ध करने लगे । वानरेन्द्रों ने उच्च निनाद करते हुए इन राक्षस वीरों से तुमुल संग्राम किया । कालभैरव की भांति वे परस्पर एक - दूसरे को मार - मारकर भूमि पर ढेर करने लगे । वे ले - ले , दे- दे की हुंकृति कर निर्दय वार करने लगे । कुम्भ ने अमित विक्रम प्रकट किया । उसने अंगद को बाणों से बींधकर व्याकुल कर दिया । तब सुग्रीव ने कनक - भूषण तीक्ष्ण बाणों की वर्षा करके उसके उदर को चीर डाला । वह घोर नाद करता हुआ भूमि पर गिरकर छटपटाने