123. अस्त्रपाणि रावण ज्वालामुखी के लावे के समान ज्वलन्त प्रवाह की भांति राक्षस - सैन्य लंका सिंहद्वार से बाहर निकली - हज़ारों दुन्दुभियां गड़गड़ाती , शंख- शृंगीनाद करती , जयध्वनि से मेदिनी को कंपाती , हय - दल के पदाघात से उड़ी धूल से सूर्यमण्डल को अन्धकारावृत्त करती हुई प्रलयज्वाला- सी मृत्यु की कराल-जिह्वा- सी । राम ने असंयत होकर विभीषण से कहा - “ हे लंकेश्वर, यह प्रलय- मेघ के समान प्रचण्ड राक्षस सैन्य आ रही है। पुत्रशोक - दग्ध रावण इस प्रचण्ड सेना में कौन - सा है, इस वीरवाहिनी के नायक कौन - कौन हैं , सो अनुग्रह करके मुझे बताओ। " विभीषण ने कहा - “ राघव , कटक के आगे - आगे बाल रवि के समान जो तेजस्वी पुरुष स्वर्णखचित पर्वत के समान दिग्गज हाथी पर आ रहा है, वह धीर- वीर मातुलि अकम्पन है, जो लंका का प्रधान मन्त्री है । इसके पीछे सिंह की ध्वजावाले रथ पर आरूढ़ नील मेघ के समान अतिरथी महोदर है । स्वर्ण के साजों से सज्जित चपल अश्व पर जो योद्धा भारी शूल लेकर चल रहा है, वह वज्र है । इसके वाम पाश्र्व पर काले अश्व पर सवार त्रिशुलधारी त्रिशिरा है । मेघ के समान स्वरूप वाला, विशाल हाथी पर धनुष - बाण लिए कुम्भ चल रहा है और उसके पीछे स्वर्णरथ पर जो सहस्रों घंटियां बजाता आ रहा है, यह अपराजेय निकुम्भ महारथ है । उसके दायें भाग में अश्व पर सवार अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष , जो धनुष - बाण लिए है, नरान्तक है। धनुर्धरों में अग्रगण्य और भयंकर भूतों से परावृत , रत्नजटित रथारूढ़, मन्त्रियों और सेनानायकों से रक्षित , पर्वत के समान अचल , बन्दीजन - वन्दित , जिसके मुकुटमणि धूप में रविरश्मि की भांति देदीप्यमान हैं , और जिसके मस्तक पर चन्द्रमा के समान श्वेत छत्र लगा है, वह रक्षपति महिदेव जगज्जयी रावण है । " राम ने कहा - “ राक्षसराज रावण का तेज तो अपरिसीम है । इसकी अंग - सुषमा देवताओं से भी अधिक शोभायमान है, और इसके पार्षद भी बड़े तेजस्वी प्रतीत होते हैं । कौन कहता है कि लंका वीरों से शून्य हो गई है ! " _ " राघव , जिस प्रकार महातेज रावण इन भयानक आकृति वाले भूतों से घिरा है, उसी प्रकार इसकी अन्तरात्मा भी कलुषित है। यही कारण उसके प्रबल पराक्रम के भंग होने का है। " राम ने वानर - कटक के व्यूह पर एक विहंगम दृष्टि डाली। दोनों सैन्य परस्पर निकट होने लगीं । दोनों सैन्य वीर -दर्प से गरज रही थीं । राम अविचल भाव से व्यूह में खड़े थे। उनके पीछे लक्ष्मण, हनुमान् , जाम्बवन्त और विभीषण थे। इसी क्षण सुग्रीव दुर्धर्ष वेग से उछलकर रावण के व्यूह में घुस गया और अपनी वज्रगदा घुमाते हुए रावण के निकट पहुंच , फर्ती से धनुष की नोक से रावण के मस्तक पर से मुकुट गिरा दिया । राक्षस सैन्य ने इस हस्तलाघव को लक्ष्य नहीं किया। सुग्रीव ने ललकारकर कहा - “ अरे राक्षसों के स्वामी , यह
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४४४
दिखावट