पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४४७

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पर चढ़कर और कभी रथ से उतरकर युद्ध कर रहे थे। लक्ष्मण को देखते ही रावण ने गर्जना की । उसने कहा - “ अरे पुरन्दर , देवकुल कलंक, दास , आज मैं तुझसे अब और युद्ध नहीं करूंगा। आज उस कपटी पामर सौमित्रि को मारूंगा। तू इस पृथ्वी पर एक दिन और निर्विघ्न जीवित रह । ” वह भैरव -नाद करता हुआ आगे बढ़ा । यह देख विडालाक्ष का वक्ष चीर मारुति हनुमान् रावण के सम्मुख आ गदा घुमाने लगे । रावण ने अनवरत बाण मारुति पर छोड़कर कहा - " हट रे बर्बर , मार्ग छोड़कर दूर हट ! " ___ “ अरे पामर, परदारारत , लोभी , चोर, तनिक ठहर तो ! ” हनुमान् ने गदा घुमाकर रथ पर प्रहार किया । रथचक्र भंग हो गया । इसी समय सुग्रीव भी उदग्र का वध कर वहां आ पहुंचे। रावण ने घृणा से हंसकर कहा - “ अरे , तू अभी अपनी भ्रातृवधू तारा को फिर से विधवा करने इसी कुक्षण में मरने को यहां आ पहुंचा! ठहर , अथवा तुझे छोड़ता हूं, हट , मार्ग छोड़ दे। अभी मैं उस पतित सौमित्रि को मारूंगा। " ___ “ अरे अधर्मी, मैं अभी तुझे मारकर मित्र - वधू का उद्धार करता हूं । ” सुग्रीव ने वेग से शूल फेंका, साथ ही हनुमान् ने गदा का वज्र -प्रहार किया । रावण का रथ भंग हो गया , परन्तु सारथि तुरन्त दूसरा रथ ले आया । रथ पर चढ़कर रावण ने अनेकविध मन्त्रसिद्ध बाणों से सुग्रीव और हनुमान् को वेध डाला । सुग्रीव और हनुमान मूर्छित होकर भूमि पर गिर गए। रावण गर्जन- तर्जन करता हुआ लक्ष्मण के सम्मुख चला । लक्ष्मण को दूर से ही देखकर रावण ने कहा - “ अरे अधम सौमित्रि, इतनी देर में तू मुझे मिला ! कह कहां है तेरा रक्षक राम , इन्द्र और कार्तिकेय, भ्रातृहन्ता सुग्रीव , कुल - कलंक विभीषण ? बुला उन सबको अपनी रक्षा करने के लिए। अपनी जननी सुमित्रा को स्मरण कर ले । आज मेरे रसोइए तेरे ही मांस से मेरा भोजन बनायेंगे । आज मैं तेरा हृदय बहिन सूर्पनखा को खाने को दूंगा । " लक्ष्मण ने धनुष टंकारते हुए कहा - “ राक्षसराज, तू पुत्रशोक से अधीर हो रहा है । आ , तुझे अभी तेरे पुत्र के पास पहुंचाकर शोकरहित करता हूं। इतना कह लक्ष्मण ने तीक्ष्ण शरों से रावण का शिरस्त्राण उड़ा दिया । रावण ने भी रणमत्त हो बाण छोड़े। दोनों दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने लगे । दोनों एक -दूसरे के शस्त्रों को काटते रहे। दोनों युद्ध-विशारद , दोनों महाप्राण , महास्त्रों के प्रयोक्ता, दोनों महारथ क्रुद्ध काल की भांति समरांगण पर छा गए । अब लक्ष्मण ने सात बाण धनुष पर चढ़ाकर रावण की ध्वजा काट डाली । इसी समय रावण की दृष्टि विभीषण पर पड़ी । उसने तत्काल बिजली की भांति दीप्तिमती महाशक्ति उस पर फेंकी। परन्तु लक्ष्मण ने उसे बीच में ही तीन बाणों से काट डाला । इस प्रकार लक्ष्मण के हाथों विभीषण की रक्षा होते देख रावण क्रोध से सर्प की भांति फुफकारने लगा । उसने कहा - “ अरे सौमित्रि , तेरे हस्तलाघव की प्रशंसा करता हूं । तुझमें शक्तिधर कार्तिकेय से भी अधिक सामर्थ्य है। पर आज तू जीवित नहीं बच सकता। ले रे पुत्र - घाती , मर! " इतना कह, उसने रौद्र तेज से आपूरित जाज्वल्यमान अष्टघंट भैरव - रव ज्वलन्त