पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४६०

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के राज्यों का यथावत् विभाजन हुआ । रावण का साम्राज्य छिन्न - भिन्न हो गया । विभीषण को लंका का राजराजेश्वर तथा सप्तद्वीपों का संरक्षक स्वीकार किया गया । देवलोक और आर्यावर्त के राज्यों की नई सीमाएं निर्धारित हुईं और तब से दक्षिणारण्य तक समूचा ही भारतवर्ष आर्यावर्त घोषित कर दिया गया । वशिष्ठ और विश्वामित्र ने परामर्श कर आर्यों की इस सम्मिलित जाति का नये सिरे से संगठन कर गुण - कर्म देख उन्हें चार वर्णों में विभाजित कर वर्ण-मर्यादा की ऋचाएं प्रस्तुत की और वे सब वेदांग स्वीकार कर ली गईं । अब वेद निश्चित रूप से आर्यों की सांस्कृतिक व्याख्या का धर्मग्रंथ स्वीकार किया गया । चार वर्ण बन जाने से सब छोटे- बड़े, मूर्ख और विद्वान् , स्वामी और सेवक परस्पर पृथक् समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए भी समष्टि रूप से आर्य कहलाने लगे । विजितों को , अनार्यों को , पतितों को भी शूद्रसंज्ञा दे आर्यत्व की जाति -मर्यादा में बांध लिया गया । आर्यों, देवों तथा आर्येतरों में मैत्री सम्बन्ध स्थापित हो गए । आर्यों का सौष्ठव सबने स्वीकार किया तथा वशिष्ठ आर्यों के सबसे बड़े धर्मनेता स्वीकार कर लिए गए। उन्हीं की यज्ञविधि आर्यों ने स्वीकार की । केवल देवगण ने न वर्ण - मर्यादा स्वीकार की , न परिवार प्रथा , न पितृमूलक कुल- परम्परा, न वशिष्ठ की यज्ञ - विधि । उनके धर्म - नेता नारदर्षि वामदेव ही रहे और उन्हीं की वामविधि देवों ने स्वीकार की । परन्तु दोनों में सद्भाव कायम हो गया । सब व्यवस्था कर रामभद्र मित्र -परिजन के साथ भरत को आगे कर नन्दिग्राम में आए और ठीक चौदहवें वर्ष की समाप्ति पर चारों भाइयों ने जटा कटाकर तपस्वी वेश त्याग राजोचित वेश तथा राज- परिच्छद धारण किए। फिर मित्रों , पुरोहितों और ऋषियों सहित अयोध्या में आकर राम ने धूमधाम से राज्याभिषेक कराया। सम्पूर्ण आर्यावर्त , देवलोक और द्वीप - द्वीप के राजप्रतिनिधियों ने रामाभिषेक में भाग लिया । राम समूचे आर्यावर्त के एकच्छत्र चक्रवर्ती सम्राट्, घोषित कर दिए गए। सीता जनकनन्दिनी आर्यों की राजमहिषी बनीं । सब समारोह सम्पन्न होने पर राम ने दान - मान से संस्कृत कर देव , मानव , दानव, नम , नाग , असुर , रक्ष , यक्ष , वानर , ऋक्ष, दैत्य प्रतिनिधियों , राजर्षियों , यतियों , ब्रह्मचारियों, वेदपाठियों , भटों , सुभटों , मित्र बान्धवों को विदा किया । सेवकों को संतुष्ट किया और अयोध्या में रामराज्य संचालित किया । मथुरा के शासक लवणासुर ने राम का शासन स्वीकार नहीं किया । वह यादव नरेश भीमसात्वत का प्रतिनिधि था । वह राक्षसधर्मी तथा नरभक्षी था । इसलिए राम ने शत्रुघ्न को उस पर चढ़ाई के लिए भेजा। शत्रुघ्न ने घोर युद्ध कर लवणासुर को मार डाला । रामचन्द्र ने शत्रुघ्न ही को मथुरा के राज्य पर अभिषिक्त कर दिया । यादव - नरेश भीम शत्रुघ्न के भय से सुदूर दक्षिण में हट गया । शत्रुघ्न बारह वर्ष मथुरा की गद्दी पर रहे । कालान्तर में राम के दो पुत्र हुए - कुश और लव; लक्ष्मण के अंगद और चन्द्रकेतु ; भरत के तक्ष और पुष्कर; शत्रुघ्न के सुबाहु और शत्रुघाती । इसी समय केकय देश के आनव राजा भरत के मामा युधाजित् को मारकर गन्धर्वो ने उसका राज्य छीन लिया । यह सुन राम ने भरत को चतुरंग चमू दे गन्धों पर चढ़ाई के लिए भेजा। भरत ने गन्धर्वराज को पराजित कर गन्धर्व देश और केकय देश पर अधिकार कर लिया । राम ने भरत को वहां का राजा बनाया । समय पाकर भरतपुत्र पुष्कर ने