11 . स्वर्णपुरी लंका प्रहस्त ने लंका में प्रवेश किया । जब वह विशाल नगरद्वार पर पहंचा तो उसने देखा - द्वार पर दृढ़ लौह -कपाट लगे हैं । कपाटों में मोटी - मोटी अर्गलाएं लगी हैं । अर्गलाओं पर विराट उपलयन्त्र जड़े हुए हैं । ऊपर की बुर्जियों पर अग्निभुशुण्डिकाएं रखी हैं । नगर के परकोटे के भीतरी भाग में स्वर्णखचित दिव्य कारीगरी चित्रित है। बीच-बीच में मणि - मूंगे जड़े हैं । परकोटे के बाहर विशाल खाई जल से परिपूर्ण है । खाई पर द्वार तक विशाल फलकमार्ग है -जिनमें दुर्भेध सुदृढ़ संक्रमयन्त्र लगे हैं । संक्रम स्वर्ण के खम्भों और स्वर्णवेदियों पर आधारित हैं । प्राचीरों पर दुर्जेय सुभट चौकसी कर रहे हैं । प्रहस्त ने सोचा इस दुर्भेध - सुपूजित , सुरक्षित लंकापुरी पर आक्रमण करने का साहस देव , दैत्य , नर , नाग कोई भी नहीं कर सकता । लंका के चारों ओर समुद्र, वन और खाई तथा दुर्बोध प्राचीर, विशाल चतुष्पथों पर अश्व, रथ, गज पर आरूढ़ योद्धा- यक्ष किन्नर , देव - दैत्य , नगरजन - मणि - माणिक्य -मुक्ता - सज्जित अभय - आनन्दित मुद्रा में मत्त आ - जारहे हैं । नगर की वीथी , पथ , चतुष्पथ, राजपथ पार करता हुआ प्रहस्त धनपति कुबेर के अलौकिक दिव्य प्रासाद के सम्मुख जा खड़ा हुआ। उस प्रासाद का वैभव देख प्रहस्त आश्चर्यचकित रह गया । प्रासाद के सिंहद्वार पर वैडूर्यमणि और मूल्यवान मुक्ताओं की कलात्मक चित्रकारी थी । वहाँ के खम्भे कुन्दन के बने थे। ऊपर जाने के लिए स्फटिकमणि की रत्नजटित सीढ़ियां थीं । ठौर -ठौर पर यज्ञशाला और वेदिकाएं सुसज्जित थीं जिनमें अनेक आसन रखे हुए थे। वह भव्य प्रासाद मन्दराचल के समान विशाल था । प्रहस्त ने साहस करके उस दिव्य प्रासाद में प्रवेश किया । द्वार पर उसे किसी ने न रोका। वह सात कक्षों को पार करता हुआ चला गया । सातवें कक्ष में उसने देखा एक विराटकाय पुरुष स्वर्ण की माला पहने और हाथ में वज़नी लोहे का मुदूर लिए बैठा है । अग्नि की लपट के समान उसकी जिह्वा थी । उसके बड़े- बड़े लाल - लाल नेत्र थे । होठ बिम्बाफल के समान और दांत बड़े पैने थे। गर्दन शेर के समान और नाक उभरी हुई। वह बहुत मोटा -ताजा था , तथा उसकी खूब घनी काली दाढ़ी थी । उस यमराज के समान विराट कालपुरुष के विकराल रूप को देखकर प्रहस्त कांप गया । परन्तु उस पुरुष ने , जैसे मेघ गरजे उस भांति गर्जना करके कहा - “ तू कौन है, और दिक्पति लोकपाल कुबेर धनेश के इस आवास में तेरे आने का कारण क्या है ? " ___ “प्रसीदतु प्रसीदतु दिक्पति लोकपाल धनेश कुबेर ! ” प्रहस्त ने दोनों हाथ उठाकर कहा। उस पुरुष ने संदेह से उसकी ओर देखकर कहा - “किन्तु अपना अभिप्राय निवेदन कर ! क्या तू लंका का नागर है ? "
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/४७
दिखावट