सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वमन करता हुआ मूर्छित हो गया । दानवेन्द्र मकराक्ष ने उसे अच्छी तरह रस्सियों से जकड़कर बांध लिया । ___ यह देख अकम्पन रथ को त्याग हाथ में शूल ले आगे बढ़ा। दानवेन्द्र मकराक्ष ने कहा - “ अब तुम्हें प्राण देने से क्या प्रयोजन है, वीर ? हमने अपने पराक्रम से द्वन्द्वयुद्ध में वैश्रवण रावण को बन्दी किया है । तुम्हें उचित है अपनी नगरी को लौट जाओ। ” रावण ने मूर्छाभंग होने पर अपने बंधन देख अकम्पन से कहा - “ मातुल , मातामह से कहना - मकराक्ष दानव ने मुझे द्वन्द्वयुद्ध में बन्दी बनाया है। ” अकम्पन भी कुछ सोचकर रुक गए । दानव रावण को बांधकर सब बन्दियों के साथ समुद्र - तीर पर ले चले। समुद्र - तट पर तरणियाँ बंधी थीं । अपने बन्दियों और लूटे साज - सामान के साथ दानवेन्द्र मकराक्ष दलबल - सहित तरणियों पर चढ़ अपने द्वीप की ओर चल दिया ।