पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/५९

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14. जल - देव दानवों का यह दल अपने बन्दियों और लूटे हुए माल को लेकर तरणियों में बैठ तेज़ी से समुद्र -गर्भ में अग्रसर होने लगा । बन्दियों के बीच रस्सियों से बंधी हई अपनी प्रेयसी उस तरुणी को रावण ने अपने परिजनों के साथ बैठे देख लिया । रावण को देखते ही तरुणी की आंखें चमकने लगीं । उसने पास बैठे एक बूढ़े दैत्य के कान में कुछ कहा । दैत्य ने आंख उठाकर रावण को देखा । छाती में करारी चोट लगने और रक्त - वमन के कारण रावण अस्वस्थ और श्रमित हो रहा था । परन्तु उसने अकेले ही दानवेन्द्र से, रथारूढ़ होने पर भी विरथ होकर , युद्ध किया था । इसलिए दानवेन्द्र ने उसे आदरपूर्वक सब बन्दियों से पृथक् बैठाया तथा पीने को एक भाण्ड मद्य भी दिया । परन्तु रावण ने अस्वीकार करते हुए कहा - “ सभी बन्दियों के समान मैं भी हूं, अनुग्रह मुझे नहीं चाहिए ! ” दानवेन्द्र ने फिर आग्रह नहीं किया । धीरे - धीरे सूर्य अस्त होने लगा और सागर में भी तूफान के चिह्न प्रकट होने लगे। तरणियों पर सभी पाल चढ़ा दिए गए। बन्दी स्त्रियां और धन की मंजूषाएं बीच में रख ली गईं । सभी तरणियों को एक में बांध दिया गया । देखते- ही -देखते वायु का वेग बढ़ गया । प्रचण्ड वायु हल्की वस्तुओं को उठाती और भारी वस्तुओं को गिराती प्रलय -गर्जना करने लगी। सागर में चट्टनों की भांति बड़ी - बड़ी लहरें उठकर क्षुद्र तरणियों को आकाश में उछालने और गिराने लगीं । बन्दी और अबन्दी सभी जन चीत्कार करने लगे। सबके कोलाहल से वह समुद्र का गर्जन - तर्जन और भी भयावह हो उठा । चर्म - रज्जुओं के सुदृढ़ बन्धन टूटने लगे । तरणियां दूर दूर बहने और उलट- पलट होने लगीं। दानवेन्द्र ने बन्दियों को बन्धनमुक्त करके अपनी अपनी सुरक्षा करने को उत्साहित किया । इसी क्षण वह तरणी जिसमें असुर बन्दी थे, एक पर्वत के समान लहर पर बहुत ऊंची चढ़कर पलट गई। लहर के थपेड़ों से उसके टुकड़े- टुकड़े हो गए । तरणी के सब आरोही महासागर के उस प्रलय- तूफान में खो गए। सबसे पृथक् बंधे रहने के कारण रावण बन्धनमुक्त न हो सका। रावण की अभिसार -सखी उस दैत्यबाला ने गिरते -गिरते यह देखा । पर्वत - समान विशाल एक लहर ने उसे बहुत ऊंचा उछालकर दूर फेंक दिया था । वह उस अनन्त सागर के सघन अन्धकार में आंखें फाड़ - फाड़कर अपने चारों ओर अपने रमण को देखने लगी । समुद्र -जल की सारी बौछारें चारों ओर से उसकी आंखों को अन्धा कर रही थीं । लहरों के थपेड़े उसे स्थिर रहने नहीं देते थे। वह बार -बार अपना वक्ष ऊपर उठा अपने प्रियतम को निहार रही थी । एकाएक एक तरंग ने रावण को उछाला और फिर वही जल - गर्भ में उसे ले गई। यह देख दैत्यबाला ने अपनी कमर में छुपा हुआ छुरा दांतों में दबाया और डुबकी ली । दुर्धर्ष प्रयास के बाद उसने रावण को पकड़ा । रावण मूर्छित था । उसने झट उसके बन्धन काटे और वेग से धकेलती हुई लहरों के सहारे उसे ले चली । इसी समय एक काष्ठ फलक बहता हुआ उसके हाथ लग गया । उसने ज़ोर लगाकर रावण के