लाभाप्रतीक्षणाभिामानिन्यै कुमारीमनूढां कन्यामालभेत । " इसके बाद दाढ़ीवाले पुरुष ने पुकारकर कहा - “ पशु लाओ। " तुरन्त ही गाय , घोड़ा आदि सात ग्राम्य पशु और हरिण आदि सात जंगली जीव रस्सियों से बांधकर लाए गए । दाढ़ीवाले पुरुष ने मन्त्रपाठ किया : “ पशूनेवावरुन्धे सप्त ग्राम्या : पशव : सप्तारण्या : सप्तछदांस्युभयस्यावरुध्यै । " इसके बाद उसने रस्सी लेकर मन्त्रपाठ करते हुए बलि - जीवों को बांधना आरम्भ किया । पुरुष ने मन्त्रपाठ किया : “ आददे ऋतस्य त्वा देव हवि : पाशेनाऽऽरभे सावित्रेण रशनामादाय पशोर्दक्षिणा बाह्वौ परिवीयोध्वमुत्कृष्य आददे। " इन मन्त्रों को पढ़कर दानवेन्द्र ने रावण की तथा महिषी ने दैत्यबाला की दाहिनी भुजा रस्सी से बांधकर ऊपर को खींची । चरक ने फिर मन्त्रपाठ किया : “ दक्षिणेऽध :शिरसि पाशेनाक्ष्णया प्रतिमुच्य धर्षा मानुषा नित्यमुक्तरतो यूपस्य नियुक्ति दक्षिणत एकादशाननान्। ” । - यह मन्त्रपाठ होने पर उन्होंने वही रस्सी सिर की तरफ ले जाकर पीछे से पैरों को भी बांध दिया । वध्यों का अंग जकड़ गया । चरक ने अन्य पशुओं को भी इसी भांति दूसरे यूपों से बांध दिया , जिससे वे हिल डुल न सकें । अब उन्होंने मन्त्रपाठ कर फिर अग्निहोत्र किया । चरक ने उठकर खड़ग उठाया और मन्त्र पढ़ा : " वज्रो वै स्वधिति : शान्त्यै पार्श्वत् ...। " और एक पशु का सिर एक ही बार में धड़ से जुदा कर दिया । उसका मांसखण्ड लेकर यजमान दैत्येन्द्र और महिषी ने आहुति दी । इसी प्रकार मन्त्रपाठ करके एक - एक कर सभी पशुओं को मार - मारकर यज्ञ करना आरम्भ कर दिया । इस समय बहुत - से दानव वहां आ जुटे थे। उनमें बहुत से उन मारे हुए पशुओं की खाल उधेड़ - उधेड़कर उनका मांस साफ करके बड़े - बड़े भाण्डों में भरकर चूल्हों पर चढ़ाने लगे । चरक ने मन्त्रपाठ किया - “ सुकृताच्छमितार: कृण्वन्तूत मेघं शृतपाकं पचन्तु । " इसके बाद अब दानवेन्द्र मकराक्ष विकराल खाण्डा हाथ में लेकर रावण के सम्मुख आया । उसने कहा - “ अरे विश्रवा मुनि के पुत्र , वाणी के देवता के लिए, जलों के देवता के लिए, अलभ्य वस्तु उपलब्ध होने के लिए मैं तेरी बलि देता हूं । अन्तरिक्ष के देव प्रसन्न हों ! जल के देवता प्रसन्न हों । तुझे स्वर्ग मिले । यह पूत खड्ग तुझे पूत करे । " महिषी ने दैत्यबाला के सम्मुख आकर कहा : । “ लब्धप्रतीक्षा देवता के लिए तुझे बलि देती हूं । " उसने अपने खड्ग की नोक से उसे छूते हुए अक्षत उस परफेंके । इसके बाद चरक ने उन्हें पुष्पमाला अर्पित की और सौत्रामणि सुरा दी । बहुत - से बाजे जोर से बज उठे ।
पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/६३
दिखावट