पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/६४

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सुरा पीकर रावण चेतन हुआ । आसन्न विपत्ति को उसने देखा । सामने दूर समुद्र के शान्त जल पर क्षितिज के उस छोर पर जाकर उसकी आंखें ठहर गई । आशा और उल्लास से उसका हृदय धड़कने लगा । उसने देखा - नील जल- राशि पर सुदूर क्षितिज के पास श्वेत - श्वेत धब्बे दीख रहे हैं । उसने नेत्रों के संकेत से दैत्यकुमारी को भी बता दिया । उसके होठों के स्फुरण से तथा नेत्रों के आह्लाद से वह समझ गई कि कुछ आशाजनक संदेश है । थोड़ी ही देर में उसने देखा -बहुत - से पोत अपने पाल उड़ाए इधर बढ़े आ रहे थे । दानवों का उधर ध्यान न था । वे जोर - जोर से बाजे बजा और चिल्ला रहे थे। चरक मन्त्रपाठ कर रहा था । नरबलि की पूरी तैयारी हो चुकी थी । खड्ग मन्त्रपूत किए जा रहे थे । कुण्ड में बहुत - सी चर्बी, तिल, मांस और ईंधन जल रहा था । बड़े - बड़े भाण्डों में बलि हुए पशुओं का मांस पकाया जा रहा था । उस भीड़भाड़ में सब कुछ अव्यवस्थित - सा दीख रहा था । ___ अब चरक की आज्ञा से दैत्येन्द्र खड्ग लेकर रावण का वध करने आगे बढ़ा । यूप से बद्ध रावण ने अपनी आंखें फैलाकर फिर विस्तृत समुद्र की ओर देखा । अनगिनत तरणियां तीव्र गति से चली आ रही थीं । रावण ने कहा : " दानवेन्द्र से मेरा एक अनुरोध है। वह धर्मानुबन्धित है। " “ वह क्या है, कह? ” “ मैं मुनिकुमार हूं, मुझे वेदपाठ करना है । " “ सो तू कर, पर अधिक समय मैं ठहर नहीं सकता । " " वेदपाठ से दानवेन्द्र का भी कल्याण होगा । चरक से पूछो । " चरक ने दाढ़ी पर हाथ फेरकर कहा - “विश्रवा मुनि का पुत्र ठीक कहता है, वह वेदपाठ करे। " रावण ने उच्च स्वर से वेदपाठ करना प्रारम्भ किया। परन्तु तरणियां अभी बहुत दूर थीं । मकराक्ष ने कहा - " बस, अब और नहीं ठहर सकता । " वह खड्ग लेकर आगे बढ़ा । रावण की दृष्टि में व्यथा व्याप गई। दैत्यबाला की दृष्टि भी उन्हीं तरणियों पर थी । संकट समुपस्थित देखकर उसने कहा - “मैं कुमारी हूं, दैत्यकन्या हूं, लब्धव्य की प्राप्ति के लिए पहले मेरी बलि हो । ” । चरक ने हाथ उठाकर कहा - “ कुमारीमनूढां कन्यामालभेत । " । उसने महिषी की ओर संकेत किया और यज्ञपूत खड्ग महिषी को दिया । महिषी खड्ग लेकर आगे बढ़ी। रावण कुछ प्रतिक्रिया करे, इससे प्रथम ही दानव - महिषी का खड्ग बलि पर पड़ा । दैत्यबाला का सिर कटकर नीचे लटक गया । धड़ से रक्त की धारा उमड़ चली । रावण के नेत्रों में अन्धकार छा गया । यूप को उखाड़ने और बन्धनमुक्त होने के उसके सारे ही प्रयत्न निरर्थक गए । दानवों ने देखते - ही - देखते दैत्यबाला का सिर काटकर यज्ञ - वेदी पर चढ़ा दिया । चरक ने मन्त्र पढ़ा - “ आदद ऋतस्य त्वा देव हविः। " देखते - ही - देखते दैत्यबाला के छटपटाते शव के दानवों ने टुकड़े-टुकड़े कर डाले । मांस - खण्डों को एक बड़े भाण्ड में भरकर पाक करने के लिए आग पर चढ़ा दिया । चरक ने मन्त्र पढ़ा - “ शुक्लोदन: शुक्लपुष्पं शुक्लसप्तध्वजा: सप्त प्रदीपा : सप्त स्वस्तिका : सप्त