पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/६९

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विरोचन का बान्धव हूं । कदाचित् तुमने सुना हो , एक हेमा नाम की अप्सरा उरपुर की निवासिनी थी । उसे देवों ने मेरे लिए दे दिया था । चिरकाल तक मैं उसके साथ आनन्द से रहा । परन्तु आज चौदह वर्ष बीत रहे हैं , वह मुझे छोड़कर फिर देवों के पास चली गई । उसके सुख-विलास के लिए मैंने एक अति सुन्दर नगर की रचना की थी , जो स्वर्णमय था । उसमें मैंने उस सुन्दरी के लिए मणि -महल बनवाया था , जो आज चौदह वर्षों से सूना है । मैं उस प्रिया के विरह से व्याकुल , असमय ही वृद्ध हो गया हूं, और द्वीप- द्वीप में भटक रहा हूं । _ “ यह कन्या उसी के गर्भ से उत्पन्न हुई है। अब यह युवती हुई । तुम ऋषि- पुत्र हो , विक्रमशील हो तथा प्रजापति के वंश का रक्त तुममें है, इससे मैं यह अपनी सुलक्षणा कन्या तुम्हें देता हूं । मेरे पास बहुत स्वर्ण- रत्न है वह सब भी मैं तुम्हें देता हूं । मेरे दो पुत्र , इस कन्या के भाई, बड़े वीर और मेधावी हैं , राज - सभा के नियमों को जानते हैं उन्हें भी मैं तुम्हारी सेवा में नियुक्त करता हूं । अब तुम यह मेरा उपहार स्वीकार करो, मुझे सम्प्रहर्षित करो, अनुबन्धित करो! ” । बढ़े दानव की यह बात सुनकर रावण ने कनखियों से चरण -नख से भूमि करेदती हुई उस नव किसलय कोमल तन्वङ्गी बाला की ओर देखा तो उसका सम्पूर्ण तारुण्य जागृत् हो गया । रावण ने पूछा- “ महाभाग , आपकी इस कन्या का नाम क्या है ? " मय दानव ने कहा - “ इसका नाम मन्दोदरी है। " " तथास्तु महाभाग, अग्नि प्रज्वलित करो, मैं उसकी साक्षी में धर्मपूर्वक आपके कन्यारत्न को ग्रहण करूंगा। " बूढ़े दानव ने तत्काल सूखी समिधाएं चुन लीं और अग्नि पाषाण से अग्न्याधान किया । रावण ने कन्या का हाथ पकड़कर कहा - “ गृह्णाामि ते सौभगत्वाय हस्तम्। ” दानव मय ने एक अमोघ शक्ति उसे भेंट देकर कहा - " स्वस्ति , तुम्हारा कल्याण हो , पौलस्त्य मुनिकुमार , यह दिव्य शक्ति लो । इसके रहते तुम विश्व में अजेय हो । अब मैं चला। ” | वृद्ध दानव एक ओर जाकर पर्वत - शृंखलाओं में गायब हो गया । रावण ने नववधू की ओर देखकर कहा - “ वरं ब्रूहि। " वधू ने तिरछी दृष्टि से उसकी ओर देखकर कहा - “ अलमलम् । प्राप्त सर्वम्। " तब रावण ने अपने उत्तरीय के छोर से बाला का उत्तरीय बांध लिया और खड्ग कोष से खींच उसकी धार बाला के चरण -नख से छुआकर उसे अंक में समेटते हुए कहा - “ चलो फिर, रक्षकुलमहिषी मन्दोदरी ! ” । और दूसरे ही क्षण सद्य :विजित दानवों की वह सुरम्य पुरी , प्रासाद, हर्म्य, सौध सब रंग -बिरंगी पताकाओं और दीपावलियों से चित्रित -विभूषित , विविध वाद्यों और हर्ष कोलाहल से आपूर्यमाण हो गए ।