20 . तारकामय यह पांचवां देवासुर - संग्राम तारकामय के नाम से प्रसिद्ध हुआ । पाठकों को स्मरण होगा कि भृगु के पौत्र और शुक्र के पुत्र महर्षि अत्रि थे, जो देवलोक में अति प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध थे । उनके पुत्र का नाम चन्द्र था । आज भी ईरान में चन्द्र की पूजा होती है , तथा वहां चान्द्र वंश का ही प्रचार है । चन्द्र ही वहां का राजचिह्न है । ईरानी लोग रोज़ा या व्रत को सोम कहते हैं । सम्भवत : यह रोज़ा सोम चान्द्रायण व्रत है । ईरान में सोमधारा नगर, सोमस नदी और ग्रीस में सोमास द्वीप है। यह चन्द्र की ही प्रतिष्ठा में है। काश्यप सागर - तट पर जन्म होने से चन्द्र का नाम अम्बुधि भी विख्यात हुआ । चन्द्र असुर -याजक कुल में होने के कारण अत्यन्त प्रतिष्ठित पुरुष माने गए । वे विद्वान् और वीरों के नेता थे। चिकित्सा , औषधि और वनस्पतियों के गुण -दोषों को भी जानते थे । वे वनस्पतियों के स्वामी कहाते थे। दक्ष ने इन्हें सत्ताईस कन्याएं दी थीं । वरुणदेव को इनसे प्यार था । अग्नि के ये मित्र थे। चन्द्र इन्द्र के अभिन्न मित्र थे और उसने चन्द्र को देवभूमि में वनस्पतियों का स्वामी नियुक्त किया था । इस प्रकार चन्द्र इन्द्र के ही पास देवभूमि में रहते थे। देवों के याजक अंगिरा- पुत्र बृहस्पति थे। उनकी स्त्री का नाम तारा था । बृहस्पति की पत्नी तारा से चन्द्र का गुप्त प्रेम - सम्बन्ध हो गया , और एक दिन अवसर पाकर चन्द्र तारा को भगा ले गया । इस बात को लेकर जो झगड़ा आरम्भ हुआ , उसका आगे चलकर एक विराट रूप हो गया । बृहस्पति का पक्ष सब देवों और इन्द्र ने लिया और चन्द्र का पक्ष सब दैत्यों और दानवों ने । घातक देवासुर - संग्राम हुआ। इस युद्ध में देव हारे, परन्तु प्रह्लाद का पुत्र विरोचन इस युद्ध में काम आया । यही युद्ध पांचवें, तारकामय , देवासुर - संग्राम के नाम से प्रसिद्ध हुआ । अन्त में सन्धि हुई। तारा बृहस्पति को लौटा दी गई। परन्तु जब तारा वापस आई , तो वह गर्भवती थी । आग्रहपूर्वक पूछने पर तारा ने स्वीकार किया कि गर्भ चन्द्र का है। चन्द्र ने तारा को लौटाते समय देवों से यह शर्त करा ली थी कि पुत्र का जन्म होने पर उसका पुत्र उसे लौटा दिया जाए । इस शर्त के कारण तारा के पुत्र -प्रसव करते ही वह बालक चन्द्रमा को दे दिया गया । इस बालक का नाम बुध हुआ । युवा होने पर सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु ने अपनी पुत्री इला उसे ब्याह दी , और तपोभूमि का वह प्रदेश, जो आदित्यों के अधिकार में था , इसे दहेज में दे दिया । तब से यह प्रदेश इलावर्त कहाया । जिसे प्राचीन पर्शिया के इतिहास में एलम कहा गया है, और जिसके कारण वरुण को पर्शियन इतिहास में इलोही अथवा इलाही के नाम से पुकारा गया । इला के नाम पर, मातृगोत्र के आधार पर यह वंश भी एल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । तपोभूमि के अतिरिक्त वह असुर - प्रदेश भी , जहां के अधिपतियों का
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