पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/८६

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21 . आर्यावर्त चन्द्रपुत्र बुध असुर -याजक ऋषिकुल में होने से सब दैत्य - दानवों में प्रतिष्ठित था , अब सूर्यपुत्र मनु की पुत्री से विवाह हो जाने से उसकी और भी प्रतिष्ठा बढ़ी और देव - भूमि तथा असुर - भूमि पर एक प्रकार से उसका पूरा अधिकार हो गया । परन्तु बुध के जन्म सम्बन्धी अपवाद और देव - दैत्यों के वैमनस्य के कारण दोनों ही श्वसुर- दामाद - बुध और मनु को वहां रहना असह्य हो गया और वे पश्चिमोत्तर के दुर्जय दरों को पार करते हुए इलावर्त को त्याग भारत में चले आए। भारत में आकर मनु ने तो सरयू - तीर अयोध्या नगरी बसाकर अपने पिता के नाम से सूर्यवंश की गद्दी स्थापित की , और बुध ने अपने पिता चन्द्र के नाम पर चन्द्रवंश की स्थापना करके गंगा- यमुना के संगम पर प्रतिष्ठान नगरी बसा , अपनी राजधानी बसाई। । नृवंश में यह एक नई स्थापना थी कि पिता के नाम पर नए कुल और नए वंश स्थापित हुए । भारत में आकर दोनों ही कुलों ने वेद को अंगीकार किया तथा वर्ण-मर्यादा और परिवार -व्यवस्था प्रचलित कर आर्य जाति की एक नवीन संस्कृति स्थापित की , जो वैदिक थी । इस आर्य संस्कृति में अनेक नई बातों का समावेश था । प्रथम तो यह कि उसमें विवाह-मर्यादा दृढ़बद्ध की गई थी , और कुल - परम्परा पितृमूलक निश्चित की गई थी । यहां तक कि यदि वीर्यकिसी अन्य पुरुष का भी अनुदान लिया हो , तो भी सन्तति का पिता उस स्त्री का विवाहित पति ही माना जाएगा । दीर्घतमा ऋषि ने तो यह काम अपना पेशा ही बना लिया था । वशिष्ठ और दूसरे ऋषियों ने भी इस प्रकार दूसरों की पत्नियों को वीर्यदान दिया और उसकी सन्तान अपने पिता के कुल - गोत्र को चलाने वाली प्रसिद्ध हई । इस परिपाटी से आर्य जाति के संगठन को बहुत लाभ मिला । वह एक संगठित जाति बनती गई। यह स्वाभाविक था कि उनके राज्य, सम्पत्ति आदि सब वैयक्तिक होते गए और देखते - देखते आर्यावर्त में मानवों और ऐलों के महाराज्यों का विस्तार हो गया । आर्यों में धीरे - धीरे इन दोनों वंशों की उत्तर भारत में अनेक शाखाएं फैलीं, जो चन्द्रमण्डल और सूर्यमण्डल के नामों से विख्यात हुई । दोनों मण्डलों का संयुक्त नाम आर्यावर्त पड़ा ।