पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/८७

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22 . मानव मनु का नाम विमाता के नाम पर सावर्णि मनु और पिता के नाम पर वैवस्वत मनु प्रसिद्ध हुआ । वास्तव में मनु ने ही आर्य जाति की स्थापना की , जिसमें पितृमूलक कुल -वर्ण व्यवस्था और वेद- प्रामाण्य की विशेषता थी । अन्य वैदिक ऋषियों के अतिरिक्त वरुण , सूर्य, यम , शनि आदि की भांति मनु भी मन्त्रद्रष्टा वेदर्षि थे । परन्तु उन्होंने दण्डव्यवस्था और राजव्यवस्था का शास्त्र प्रसारित किया , जो मानव धर्मशास्त्र कहाया । मनु के नौ वंशकर पुत्र हुए जो सूर्यवंश की नौ शाखाओं के मूलपुरुष थे। इन्हीं के वंशज मानव कहाए। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि केवल सूर्यवंशी ही अपने को मानव कह सकते हैं , दूसरे नहीं । __ मनु के इन वंशकर पुत्रों में नरिष्यन्त , नाभाग, धृष्ट, शर्याति , करेषु और पृष्ठध्रु के पृथक्- पृथक् कुल चले ; जिनमें नाभाग और शर्याति के कुल अधिक प्रसिद्ध हुए । इस कुल में भी अनेक मन्त्रद्रष्टा ऋषि हुए । मानवों का सातवां कुल नाभानेदिष्ट का था । इसका पुत्र भालनन्दन वैश्य हो गया । परन्तु वह ऋषि था । नाभानेदिष्ट को कोई राज्य नहीं मिला , उसके पुत्र भालनन्दन को कुछ धन मिला, उससे उसने वैश्यवृत्ति अधिकृत कर ली । भालनन्दन का पुत्र वत्सप्रिय भालनन्दन वैश्य ऋषि था । पृष्ठध्रु की सन्तान शूद्र हो गई । मनु के आठवें पुत्र का कुल प्रांशु का है। यही कुछ पीछे वैशाली का प्रख्यात कुल हुआ। इसी कुल में चक्रवर्ती मरुत् राजा हुआ। मनु का सबसे ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु अयोध्या में रहा । यही सूर्यकुल प्रसिद्ध हुआ, और बहुत प्रसिद्ध हुआ। इस कुल की अनेक शाखाएं चलीं । इसी कुल में उन्तालीसवीं पीढ़ी में राम ने जन्म लिया । प्रसिद्ध पुरुषों में विकुक्षि , शशाद , ककुत्स्थ, आर्द, युवनाश्व , बृहदश्व , मान्धाता , पुरुकुत्स , अम्बरीष , रघु, अज और दशरथ हुए । इस कुल की तीसवीं पीढ़ी में अनरण्य राजा हुआ। उसकी पृथक् गद्दी उत्तर कोशल की दूसरी शाखा स्थापित हुई । विख्यात त्रैयारुण , सत्यव्रत और हरिश्चन्द्र इसी शाखा में हुए। राम से केवल एक ही पीढ़ी पहले बाहु ने उत्तर कोशल वंश की तीसरी नई शाखा स्थापित की , जिसमें सगर और भगीरथ हुए। पैंतीसवीं पीढ़ी में अयुतायुस ने दक्षिण कोशल राजवंश की नींव डाली , जिसमें ऋतुपर्ण, सुदास , मित्रसहकल्माषपाद राजा प्रसिद्ध हुए । यह राज्य वर्तमान रायपुर , विलासपुर और सम्भलपुर के आसपास था । इसकी राजधानी श्रीपुर थी । इसी वंश की विदेह में मैथिल शाखा इक्ष्वाकु के भाई ने स्थापित की , जिसमें निमि, मिथि, जनक सीर ध्वज , वीतहव्य प्रसिद्ध राजा हुए । मैथिल की एक शाखा मूल शाखा से सैंतीसवीं पीढ़ी में बसी , जिसमें कुशध्वज कृतध्वज , आदि हुए । तीसरी मैथिल शाखा ऋतुजित् की फटी जिसमें सीरध्वज जनक - राम के श्वसुर हुए । दक्षिण कोशल राजवंश के राजा ऋतुपर्ण के यहां नल ने गुप्तवास किया था । नल