जीर्ण होने पर भी कामतृष्णा जीर्ण नहीं होती। " इस प्रकार ययाति के मन में घोर ग्लानि हुई , और अपने पुत्रों को राज्य बांट भृगुतुग पर अन्न - जल त्याग प्राण त्यागने जा बैठा और अन्त में वहीं प्राण त्याग दिए। महाराज ययाति चौदह द्वीपों के स्वामी थे। उन्होंने अपना राज्य इस प्रकार अपने पुत्रों को बांट दिया — दक्षिण पूर्व के भूभाग का राज्य तुर्वशु को दिया । जहां आजकल रीवां रियासत है । चंबल के उत्तर , यमुना के पश्चिम की दिशा में द्रुह्यु को दिया । गंगा - यमुना के द्वार के उत्तर में अनु को राज्य दिया और ईशान में चम्बल - बेतवा और केन का मध्यवर्ती देश यदु को । अन्त में मध्य देश में पुरु को राज्य दे, उसे अपनी प्रधान गद्दी दी । इस प्रकार पुरु , द्रा , अनु , तुर्वशु और यदु इनके पृथक् - पृथक् राज्य स्थापित हो गए और उनके मुख्य घराने के शासक ययाति के सबसे छोटे पुत्र पुरु हुए । उन्हीं के नाम पर पौरव वंश चला । पुरु प्रतिष्ठान में राजधानी बना , गंगा- यमुना के मध्यवर्ती द्वाबे पर शासन करने लगे।
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