पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/९९

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27. दाशराज - संग्राम नाहुषों द्वारा देवलोक को अधिकृत करने की बात पाठक भूले न होंगे । नहुष को जब अपमानित करके देवों ने देवलोक से निकाल दिया तो उसके भाई रजि ने नाहुषों को लेकर बलात् उस पर अधिकार कर लिया । रजि और देवों में घनघोर युद्ध हुआ , जिसमें असुरों - दैत्यों ने रजि का साथ दिया । असल में दैत्यों का असुर - भूमि - अपवर्त - से एक प्रकार से बहिष्कार ही हो गया था । इससे देवों के प्रति असुर इस प्रकार खीझ गए थे कि वे युद्ध का कोई अवसर ही न चूकते थे। नाहुषों के प्राबल्य और असुरों के सब राज्यों की सहायता से बलिष्ठ नाहुष देवभूमि को छोड़ते न थे। उनके भय और अत्याचारों से तंग प्रताड़ित देव मारे - मारे फिरते थे। इन्द्र की भी बड़ी दुर्दशा हो गई थी । वह सर्वत्र मुंह छिपाता फिर रहा था । अब उसने पैजवन सुदास को उभारा। पाठक जानते हैं कि वृत्र - युद्ध में सुदास को इन्द्र ने मित्रवत् माना तथा उसे राज्याधिकार दिया था । सुदास इन्द्र के इस उपकार को भूला न था । फिर इन्द्र ने वशिष्ठ को समझा -बुझाकर सुदास के पास भेज दिया था । वशिष्ठ के कहने से सुदास इन्द्र के लिए युद्ध करने को सन्नद्ध हो गया । परन्तु केवल इन्द्र ही के लिए नहीं सुदास ययाति - पुत्रों के राज्य -विस्तार को भी सहन नहीं कर सकता था । रावी नदी का नाम उन दिनों परुष्णी था । परुष्णी के दोनों किनारों पर सुदास का राज्य था , जो उत्तर पांचाल राज्य कहाता था । सुदास पिजवन के पुत्र थे। पिजवन राजा न थे, परन्तु प्रचण्ड युद्धकर्ता थे। सुदास को प्रसिद्ध वैदिक विजयी महाराज दिवोदास ने गोद लिया था तथा अपना पुत्र बनाया था । दिवोदास मद्ल के पुत्र वध्यश्व के पुत्र थे । ये वध्यश्व विदर्भ के राजा नल के नवासे थे। पांचाल देश में मुद्गल , सृञ्जय , बृहद्रिपु , क्रिमिलाश्व और जयीनर के खण्डराज्य थे, जिनके प्रमुख सुदास थे । सुदास को गौरव इन्द्र की सहायता से ही प्राप्त हुआ था । अब वही इन्द्र देवलोक से भ्रष्ट हो मारा-मारा फिर रहा था । सवर्ण का राज्य इनकी राज्य -सीमा से मिला हुआ था । उधर आर्यावर्त पर ही देवलोक की भांति नाहुषों का प्राबल्य हो रहा था । जो सीमाएं ययाति ने पुत्रों को दी थीं , वे उनसे सन्तुष्ट न थे। इन सब कारणों से दाशराज महासंग्राम की भूमिका बंधी। नहुषवंशियों ने यदु, तुर्वशु, अनु और द्रुह्यु थे तथा नाहुषों के सहायतार्थ मनुर्भरत और बहुत - से अनार्य राजा एकत्र हुए थे । इन अतिरिक्त नाहुषों के झण्डे के नीचे भार्गव , पुरोदास , पक्थ , भलान , आलन , शिव , विशात ; कवष, युध्यामधि , अज, शिग्र और चक्षु आए थे। दानव वार्चिन अपने एक लाख दानवों को लेकर आया था । बहुत से सिम्यु जाति के मुखिया भी आए थे। केवल पौरवों ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था । दस्युराज वाचैिन ही इस संयुक्त महासैन्य का नेता था । ___ सुदास की सहायता इन्द्र और अनेक आर्य राजाओं ने की । इस तुमुल संग्राम में नाहषों ने रावी नदी को दो भागों में विभक्त करके उसे पार करने की चेष्टा की , किन्तु सुदास ने तत्काल धावा बोल दिया जिससे दबाव में पड़कर नाहुषों की बहुत - सी सेना नदी में डूब