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११
वैराम्य
 

रईस है जिस पर लाख-दो-लाख का ऋण न हो?

सुवामा―मुझे विश्वास नहीं होता कि इस ऋण में निहोरा नहीं है।

मोटेराम―सुवामा, तुम्हारी बुद्धि कहाँ गयी? भला, तुम सब प्रकार के दुख उठा लोगी? पर क्या तुम्हें इस बालकं पर दया नहीं आती?

मोटेराम की यह चोट बहुत कड़ी लगी। सुवामा सजलनयना हो गई। उसने पुत्र की ओर करुणा-भरी दृष्टि से देखा। इस बच्चे के लिए मैने कौन-कौन सी तपस्या नहीं की? क्या उसके भाग्य में दुःख ही वदा है? जो अमोला जल-वायु के प्रखर झोंकों से बचाया जाता था, जिस पर सूर्य की प्रचण्ड किरणें न पड़ने पाती थीं, जो स्नेह-सुवा से अभिसिंचित रहता था, क्या वह आज इस जलती हुई धूप और इस आग की लपट में मुरझायेगा? सुवामा कई मिनट तक इसी चिन्ता में बैठी रही । मोटेराम मनही-मन प्रसन्न हो रहे थे कि अब सफलीभूत हुया । इतने में सुवामा ने सिर उठाकर कहा―जिसके पिता ने लाखों को जिलाया-खिलाया, वह दूसरों का आश्रित नहीं बन सकता। यदि पिता का धर्म उसका सहायक होगा, तो वह स्वय दस को खिलाकर खायेगा। (लड़के को बुलाते हुए) बेटा! तनिक यहाँ आओ। कल से तुम्हारी मिठाई, दूध, घी सब बन्द हो जायेंगे। रोओगे तो नहीं? यह कहकर उसने बेटे को प्यार से गोद में बैठा लिया और उसके गुलाबी गालों का पसीना पोंछकर चुम्बन कर लिया।

प्रताप―क्या कहा? कल से मिठाई बन्द होगी! क्यों? क्या हलवाई की दूकान पर मिठाई नहीं है?

सुवामा―मिठाई तो है, पर उसका रुपया कौन देगा?

प्रताप―हम बड़े होंगे, तो उसको बहुत-सा रुपया देंगे। चल, टख! टख! देख माँ, कैसा तेज घोडा है!

सुवामा की आँखों में फिर जल भर आया। 'हा हन्त! इस सौन्दर्य और सुकुमारता की मूर्ति पर अभी से दरिद्रता को आपत्तियाँ आ जायेंगी। नहीं, नहीं, मैं स्वयं सत्ब भोग लूँगी। परन्तु अपने प्राणप्यारे बच्चे के ऊपर