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दुःख दशा
 

दिनों से उनकी आँखों पर चढ़े हुए थे। उन्होंने ऐसी बाल की खाल निकाली की थानेदार साहब की पोल खुल गयी। छः मास तक अभियोग चला और धूम से चला। सरकारी वकीलों ने बड़े-बड़े उपाय किये परन्तु घर के भेदी से क्या छिप सकता था? फल यह हुआ कि डिप्टी साहब ने सब अभियुक्तों को बेदाग छोड़ दिया और उसी दिन सायंकाल को थानेदार साहब मुअत्तल कर दिये गये।

जब डिप्टी साहब फैसला सुनाकर लौटे, एक हितचिन्तक कर्मचारी ने कहा—'हुजूर, थानेदार साहब से सावधान रहियेगा। आज बहुत झल्लाया हुआ था। पहले भी दो-तीन अफसरों को धोखा दे चुका है। आप पर अवश्य वार करेगा।' डिप्टी साहब ने सुना और मुस्कराकर उस मुनष्य को धन्यवाद दिया; परन्तु अपनी रक्षा के लिए कोई विशेष यत्न न किया। उन्हें इसमें अपनी भीरुता जान पड़ती थी। राधा अहीर बड़ा अनुरोध करता रहा कि मै। आपके संग रहूँगा, काशी भर भी बहुत पीछे पड़ा रहा; परन्तु उन्होंने किसी को संग न रखा। पहिले ही की तरह अपना काम करते रहे।

जालिम ख़ाँ बात का धनी था, वह जीवन से हाथ धोकर बाबू श्यामाचरण के पीछे पड़ गया। एक दिन वे सैर करके शिवपुर से कुछ रात गये लौट रहे थे पागलखाने के निकट कुछ फिटिन का घोड़ा बिदका। गाड़ी रुक गयी और पलभर में जालिम ख़ाँ ने एक वृक्ष की आड़ से पिस्तौल चलायी। पड़ाके का शब्द हुआ और बाबू श्यामाचरण के वक्षस्थल से गोली पार हो गयी। पागलखाने के सिपाही दौड़े। जालिम ख़ां पकड़ लिय गया, साईस ने उसे भागने न दिया था।

इस दुर्घटनाओं ने कुटुम्ब का सत्यानाश कर दिया। प्रेमवती यद्यपि बड़ी सुशीला और हँसमुख स्त्री थी तथापि इस दुर्घटनाओं ने उसके स्वभाव और व्यवहार में अकस्मात् बड़ा भारी परिवर्तन कर दिया। बात-बात पर विरजन से चिढ़ जाती और कटूक्त्तियों से उसे जलाती। उसे यह भ्रम हो