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पृष्ठ:वरदान.djvu/११९

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वरदान
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कमलाचरण की अकाल मृत्यु बृजरानी के लिए मृत्यु से कम न थी। उसके जीवन की आशाएँ और उमंगें सब मिट्टी में मिल गयीं। क्या क्या अभिलाषाएँ थीं और क्या हो गया? प्रति-क्षण मृत कमलाचरण का चित्र उसके नेत्रों में भ्रमण करता रहता। यदि थोड़ी देर के लिए उसकी आँखें झपक जाती, तो उसका स्वरूप साक्षात् नेत्रों के सम्मुख आ जाता।

किसी किसी समय में भौतिक त्रय तापों को किसी विशेष व्यक्ति या कुटुम्ब से प्रेम-सा हो जाता है। कमला का शोक शान्त भी न हुआ था कि बाबू श्यामाचरण की वारी आयी। शाखा भेदन से वृक्ष को मुरझाता हुआ न देखकर इस बार दुर्दैव ने मूल ही काट डाला। रामदीन पाँडे बड़ा दंभी मनुष्य था। जब तक डिप्टी साहब मझगाँव में थे, दबका बैठा रहा, परन्तु ज्योंही वे नगर को लौटे, उसी दिन से उसने उत्पात करना आरम्भ किया। सारा गाँव का गाँव उसका शत्रु था। जिस दृष्टि से मझगाँववालों ने होली के दिन उसे देखा, वह दृष्टि उसके हृदय मे काँटे की भाँति खटक रही थी। जिस मण्डल में मझगाँव स्थित था, उसके थाने दार साहब एक बड़े घाघ और कुशल रिश्वती थे। सहस्रों की रकम पचा जाये, पर डकार तक न लें। अभियोग बनाने और प्रमाण गढ़ने मे ऐसे अभ्यस्त थे कि बाट चलते मनुष्य को फाँस लें और वह फिर किसी के छुड़ाये न छूटे अधिका -रीवर्ग उनके हथकण्डों से विज्ञ था, पर उनकी चतुराई और कार्यदक्षता के आगे किसी का कुछ बस न चलता था। रामदीन इन थानेदार साहब से मिला और अपने हृद्रोग की औषधि मॉगी। इसके एक सप्ताह पश्चात् मझगाँव मे डाका पड़ गया। एक महाजन नगर से आ रहा था। रात को नम्बरदार के यहाॅ ठहरा। डाकुओं ने उसे लौटकर घर न जाने दिया। प्रात काल थानेदार साहब तहकीकात करने आये और एक ही रस्सी में सारे गाॅव को बाँधकर ले गये।

दैवात् मुकदमा बाबू श्यामाचरण की इजलास में पेश हुआ। उन्हें पहिले ही से साय कच्चा चिट्ठा विदित था और ये थानेदार साहब बहुत