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पृष्ठ:वरदान.djvu/१३१

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वरदान
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बहुत कुछ अवसर के हाथ में रहता है। अवसर उसे भला भी मानता है और बुरा भी। जब तक कमलाचरण जीवित था, प्रताप के मन को कभी इतना सिर उठाने का साहस न हुआ था। उसकी मृत्यु ने मानो उसे यह अवसर दे दिया। यह स्वार्थपरता का मद यहाँ तक बढा कि एक दिन उसे ऐसा भास हाने लगा, मानो विरजन मुझे स्मरण कर रही है। अपनी व्यग्रता सुबह विरजन की व्यग्रता का अनुमान करने लगा। बनारस जाने का इरादा पक्का हो गया।

दो बजे रात्रि का समय था। भयावह सन्नाटा छाया हुआ था। निद्रा ने सारे नगर पर एक घटाटोप चादर फैला रखी थी। कभी कभी वृक्षों की सनसनाहट सुनायी दे जाती थी। धुऑ घरों और वृक्षों पर एक काली चद्दर की भाँति लिपटा हुआ था और सडकपर लालटेने धुएँ की कालिमा में ऐसी दृष्टिगत होती थी जैसे बादल में छिपे हुए तारे। प्रतापचन्द्र रेल- गाड़ी पर से उतरा। उसका कलेजा बाँसों उछल रहा था और हाथ-पाँव काँप रहे थे। वह जीवन में पहिला ही अवसर था कि उसे पाप का अनु- भव हुआ! शोक है कि हृदय की यह दशा अधिक समय तक स्थिर नहीं रहती। वह इस दुर्गम मार्ग को पूरा कर लेती है। जिस मनुष्य ने कभी मदिरा नहीं पी, उसे उसकी दुर्गन्ध से घृणा होती है। जब प्रथम बार पीता है, तो घण्टो उसका मुख कड़वा रहता है और वह आश्चर्य करता है कि क्यों लोग ऐसी विषैली और कडुवी वस्तुपर आसक हैं। पर थोड़े ही दिनों में उसकी घृणा दूर हो जाती है और वह भी लाल रस का दास बन जाता है। पाप का स्वाद मदिरा से कहीं अधिक भयङ्कर होता है।

प्रतापचन्द्र अँधेरे मे धीरे धीरे जा रहा था। उसके पाँव वेग से नहीं उठते थे, क्योंकि पाप ने उनमे बेड़ियाॅ डाल दी थीं। उस आह्लाद का, जो ऐसे अवसर पर गति को तीव्र कर देता है उसके मुख पर कोई लक्षण न था। वह चलते चलते रुक जाता और कुछ सोचकर आगे बढ़ता था। प्रेत उसे पाप के खड्डे में कैसा खींचे लिये जाता है?