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माधवी
 

नाथ ने पहिले कभी कोई लेख न लिखा था, परन्तु श्रद्धा ने अभ्यास की कमी पूरी कर दी थी। लेख अत्यन्त रोचक, समालोचनात्मक और भावपूर्ण था।

इस लेख का मुद्रित होना था कि विरजन को चारों तरफ से प्रतिष्ठा के उपहार मिलने लगे। राधाचरण मुरादाबाद से उसकी भेंट को आये। कमला, उमादेवी, चन्द्रकुँबर और कितनी ही पुरानी सखियाँ जिन्होंने उसे विस्मरण कर दिया था प्रति दिन विरजन के दर्शनों को आने लगी। बड़े-बड़े गण्य मान्य सज्जन जो ममता के अभिमान से हाकिमों के सम्मुख भी सिर न झुकाते वे विरजन के द्वार पर दर्शन को आते थे। चन्द्रा स्वयं तो न आ सकी, परन्तु पत्र में लिखा―जी चाहता है कि तुम्हारे चरणों पर सिर रखकर घंटों रोऊँ।

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माधवी

कभी कभी वन के फूलों में वह सुगन्धि और रङ्ग रूप मिल जाता है, जो सजी हुई वाटिकाओ को कभी प्राप्त नहीं हो सकता। माधवी थी तो एक मूर्ख और दरिद्र मनुष्य की लड़की, परन्तु विधाता ने उसे नारियों के सभी उत्तम गुणों से सुशोभित कर दिया था। उसमें शिक्षा तथा सुधार के ग्रहण करने को विशेष योग्यता थी। माधवी और विरजन का मिलाप उस समय हुआ जब विरजन ससुराल आयी। इस भोली-भाली कन्या ने उसी समय से विरजन के संग असाधारण प्रीति प्रगट करनी आरम्भ को। शात नहीं, वह उसे देवी समझती थी या क्या? परन्तु कभी उसने विरजन के विरुद्ध एक शब्द भी मुख से न निकाला। विरजन भी उसे अपने सग सुलाती, खिलाती और अच्छे अच्छे रेशमी वस पहिनाती। इससे अधिक प्रीति वह अपनी छोटी भगिनी से भी नहीं कर सकती थी। चित्त का चित्त