१४५ काशी में श्रागमन सेवती-हाँ, बालाजी मानिकपुर आये हैं । एक अहीर ने अपनी पुत्री के विवाह का निमन्त्रण भेजा था। उस पर प्रयाग से भारतसभा के सभ्योसहित रात को चलकर मानिकपुर पहुंचे। अहीरों ने बड़े उत्साह और समारोह के साथ उनका स्वागत किया है और सबने मिलकर पांच सौ गौएँ उन्हें भेंट दी है। बालाजी ने वधू को आशीर्वाद दिया और दूल्हे को हृदय से लगाया । पाँच अहीर भारतसभा के सभ्य नियत हुए । विरजन-बड़े अच्छे समाचार हैं । माधवी, इसे काट के रख लेना और कुछ ? सेवती-पटना के पासियों ने एक ठाकुरद्वारा बनवाया है। वहां की भारत-सभा ने बड़ी धूमधाम से उत्सब किया । विरजन-पटना के लोग बड़े उत्साह से कार्य कर रहे हैं । चन्द्रकुँवर-गडूरियां भी अब सिन्दूर लगायेंगी ! पासी लोग ठाकुर- द्वारे बनवायेंगे ? रुक्मणी-क्यों, वे मनुष्य नहीं है ? ईश्वर ने उन्हें नहीं बनाया ! आप ही अपने स्वामी की पूजा करना जानती हैं ? चन्द्रकुँवर-चलो, हटो, मुझे पासियों से मिलाती हो। यह मुझे अच्छा नहीं लगता। रुक्मिणी-हाँ, तुम्हारा रङ्ग गोरा है न ? और वस्त्र-आभूषणों से सनी हुई हो। बस, इतना ही अन्तर है कि और कुछ ? चन्द्रकुँवर-इतना ही अन्तर क्यों है ? पृथ्वी को आकाश से मिलाती हो ? यह मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं कछवाहों के वंश में हूँ, कुछ खबर है ? रुक्मिणी हां, जानती हूँ, और नहीं जानती थी तो अब जान गयी। तुम्हारे टाकुरसाहब ( पति ) किसी पासी से बढ़कर मल्ल-युद्ध करेंगे ? या सिर टेढ़ी पाग रखना जानते हैं ? मैं जानती हूँ कि कोई छोटा-सा पामी भी उन्हें कांख-तले दबा लेगा।
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