की है। जब कभी मैंने वियोग के आँसू बहाये हैं, तो उसी चित्र ने मुझे सान्त्वना दी है। उस चित्रवाले पति को मैं कैसे त्याग दूॅ? मैं उसकी हूॅ और सदैव उसी की रहूॅगी। मेरा हृदय और मेरे प्राण सब उनकी भेंट हो चुके हैं। यदि वे कहें तो आज मै अग्नि के अंक में ऐसे हर्षपूर्वक जा बैठू जैसे फूलों की शय्या पर। यदि मेरे प्राण उनके किसी काम आयें तो मै उसे ऐसी प्रसन्नता से दे दूॅ जैसे कोई उपासक अपने इष्टदेव को फल चढाता हो।
माधवी का मुखमण्डल प्रेम-ज्योति से अरुण हो रहा था। बालाजी ने सब कुछ सुना और चुप हो गये। सोचने लगे―यह स्त्री है, जिसने केवल मेरे ध्यान पर अपना जीवन समर्पण कर दिया है। इस विचार से बलाजी के नेत्र अश्रुपूर्ण हो गये। जिस प्रेम ने एक स्त्री का जीवन जलाकर भस्म कर दिया हो उसके लिए एक मनुष्य के धैर्य को जला डालना कोई बड़ी बात नहीं! प्रेम के सामने वैर्य कोई वस्तु नहीं है। वह बोले-माधवी। तुम-जैसी देवियां भारत का गौरव हैं। मैं बड़ा भाग्यवान् हूॅ कि तुम्हारे प्रेम-जैसी अनमोल वस्तु इस प्रकार मेरे हाथ आ रही है। यदि तुमने मेरे लिए योगिनी बनना स्वीकार किया है तो मैं भी तुम्हारे लिए इस सन्यास और वैराग्य को त्याग सकता हूँ। जिसके लिए तुमने अपने को मिटा दिया है, वह तुम्हारे लिए बड़ा-से-बड़ा बलिदान करने से भी नहीं हिचकिचायेगा।
माधवी इसके लिए पहले ही से प्रस्तुत थी, तुरन्त बोली―स्वामीजी! मैं परम अबला और बुद्धिहीना स्त्री हूँ। परन्तु मै आपको विश्वास दिलाती हूँ कि निज विलास का ध्यान आज तक एक पल के लिए भी मेरे मन में नहीं आया। यदि आपने यह विचार किया कि मेरे प्रेम का उद्देश्य केवल यह है कि आपके चरणों में सासारिक बन्धनों की वेड़ियाँ डाल दूॅ, तो (हाथ जोड़कर) आपने इसका तत्व नहीं समझा। मेरे प्रेम का उद्देश्य वही था, जो आज मुझे प्राप्त हो गया। आज का दिन मेरे जीवन का