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वरदान १७२

बालाजी―जी नहीं। मुझे यहाँ एक क्षण भी ठहरना कठिन जान पड़ता है। अभी मुझे वहाँ तक पहुँचने में कई दिन लगेंगे।

पल भर में नगर में ये समाचार फैल गये कि सदिया में बाढ आ गयी और बालाजी इस समय वहाँ ना रहे हैं। यह सुनते ही सहस्रों मनुष्य बालाजी को पहुँचाने के लिए निकल पड़े। नौ बजते-बजते द्वार पर पचीस सहस्र मनुष्यों का समुदाय एकत्र हो गया। सदिया की दुर्घटना प्रत्येक मनुष्य के मुख पर थी। लोग उन आपत्ति-पीड़ित मनुष्यों की दशा पर सहानुभूति और चिन्ता प्रकशित कर रहे थे । सैकड़ों मनुष्य बालाजी के संग जाने को कटिबद्ध हुए। सदियावालों की सहायता के लिए एक फण्ड खोलने का परामर्श होने लगा।

उधर धर्मसिंह के अन्त पुर में नगर की मुख्य प्रतिष्ठित स्त्रियों ने आज सुवामा को धन्यवाद देने के लिए एक सभा एकत्र की थी। उस उच्च प्रासाद का एक-एक कोना स्त्रियों से भरा हुआ था। प्रथम वृजरानी ने कई स्त्रियों के साथ एक मगलमय सुहावना गीत गाया। उसके पीछे सब स्त्रियाँ मण्डल बाँधकर गाते-बजाते आरती का थाल लिए सुवामा के गृह पर आयीं। सेवती और चन्द्रा अतिथि-सत्कार करने के लिए पहिले ही से प्रस्तुत थीं। सुवामा प्रत्येक महिलाओं से गले मिली और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे अक में भी ऐसे ही सुपूत बच्चे खेलें। फिर रानीजी ने उसकी आरती की और गाना होने लगा। आज माधवी का मुखमण्डल पुष्प की भाँति खिला हुआ था। कल की भाँति मात्र वह उदास और चिन्तित न थी। आशाएँ विष की गाँठ हैं। उन्हीं आशाओं ने उसे कल रुलाया था, किन्तु आज उसका चित्त उन आशाओ से रिक्त हो गया है। इसी लिए मुखमण्डल दिव्य और नेत्र विकसित हैं। निराश रहकर उस देवी ने सारी आयु काट दी; परन्तु आशापूर्ण रहकर उससे एक दिन का दुख भी न सहा गया।

सुहावने रागों के अलाप से भवन गूँज्ज रहा था कि अचानक सदिया