बड़े बड़े ढेर, कीचड़ मे लिपटी हुई भैसे, दुर्बल गायें, ये सब दृश्य देखकर जी चाहता है कि कहीं चली जाऊँ। मनुष्यों को देखो तो उनकी शोचनीय दशा है। हड्डिया निकली हुई हैं। वे विपत्ति की मूर्तियाॅ और दरिद्वता के जीवित चित्र हैं। किसी के शरीर पर एक बेफटा वस्त्र नही है और कैसे भाग्यहीन की रात दिन पसीना बहाने पर भी कभी भरपेट रोटियाॅ नहीं मिलती। हमारे घर के पिछवाड़े एक गढ्ढा है, माधवी खेलती थी। पॉव फिसला तो पानी में गिर पड़ी। यहाॅ किम्बदन्ती है कि गड्ढे मे चुड़ैलें नहाने आया करती हैं और वे अकारण यह चलनेवालो से छेड़. छाड़ किया करती हैं। इसी प्रकार द्वार पर एक पीपल का पेड़ है। वह भूतों का आवास है। गड्ढे का तो बहुत भय नहीं है, परन्तु इस पीपल का वास सारे गाँव के हृदय पर ऐसा छाया हुआ है कि सूर्यास्त ही से मार्ग बन्द हो जाता है बालक और स्त्रियाॅ तो उधर पैर ही नहीं रखते। हॉ, अकेले-दुकेले पुरुष कभी-कभी चले जाते है, पर वे भी घबराये हुए। ये दो स्थान मानो उन निकृष्ट जीवों के केन्द्र है। इनके अतिरिक्त सैकड़ो भूत-चूड़ैल भिन्न-भिन्न स्थानों के निवासी पाये जाते है। इन लोगों को चुड़ैलें दीख पड़ती हैं। लोगों ने इनके स्वभाव पहचान लिये है। किसी भूत के विषय मे कहा जाता है कि वह सिर पर चढ़ता है तो महोनों नहीं उतरता और कोई दो-एक दिन में पूजा लेकर अलग हो जाता है। गॉव-वालों में इन विषयों पर इस प्रकार वार्त्तालाप होता है, मानो ये प्रत्यक्ष घटनाएँ हैं। यहाॅ तक सुना गया है कि चुड़ैले भोजन-पानी मॉगने भी आया करती हैं। उनकी साड़ियाॅ प्रायः बगुले के पख की भाॅति उज्ज्वल होती हैं और वे बातें कुछ-कुछ नाक में करती हैं। हॉ, गहनों का प्रचार उनको जाति मे कम है। उन्हीं स्त्रियों पर उनके आक्रमण का भय रहता है, जो बनाव श्रृगार किये, रगीन वस्त्र पहिने, अकेली उनकी दृष्टि में पड़ जायें। फूलों की वास उनको बहुत भाती है। सम्भव नहीं कि कोई स्त्री या बालक रात को अपने पास फूल रखकर सोवे।
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