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पृष्ठ:वरदान.djvu/८९

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वरदान
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पा जॉय, निर्विघ्न उठा ले जाँय। कौन किसकी पुकार करे? नवयुवक पुत्र अपनी पिता की आँख बचाकर अपनी ही वस्तु उठवा देता है। यदि वह ऐसा न करे, तो अपने समाज में अपमानित समझा जाय।

खेत पक गये हैं, पर काटने में दो सप्ताह का विलब है। मेरे द्वार पर से मीलों का दृश्य दिखाई देता है। गेहूँ और जौ के सुथरे खेतों के किनारे किनारे कुसुम के अरुण और केशर वर्ण पुष्पों की पक्ति परम सुहावनी लगती है। तोते चतुर्दिक मॅडलाया करते हैं।

माधवी ने यहाॅ कई सखियाँ बना रक्खी हैं। पड़ोस में एक अहीर रहता है? राधा नाम है। गत वर्ष माता पिता प्लेग के ग्रास हो गये थे। गृहस्थी का कुल भार उसी के सिर पर है। उसकी स्त्री तुलसा प्रायः हमारे यहाँ पाती है। नख से सिख तक सुन्दरता भरी हुई है। इतनी भोली है कि जी चाहता है घण्टों उसकी बातें सुना करूँ। माधवी ने इससे बहि नापा कर रखा है। कल उसको गुड़ियों का विवाह है। तुलसी की गुड़िया है और माधवी का गुड्डा। सुनती हूॅ, वेचारी बहुत निर्धन है। पर मैंने उसके मुख पर कभी उदासी नही देखी। कहती थी कि उपले बेचकर दो रुपये जमा कर लिये हैं। एक रुपया दायज दूॅगी और एक रुपये में बरातियों का खाना-पीना होगा। गुड़ियों के वस्त्राभूषण का भार राधा के सिर है। कैसा सरल सतोपमय जीवन हे!

लो, अब विदा होती हूॅ। तुम्हारा समय निरर्थक बातों मे नष्ट हुआ। क्षमा करना। तुम्हें पत्र लिखने बैठती हूँ, तो लेखनी ही नहीं रुकती। अभी बहुतेरी बातें लिखने को पड़ी है। प्रतापचन्द्र से मेरी पालागन कह देना।

तुम्हारी,
 
विरजन'
 

( ३ )

‘प्यारे,
मझगाँव
 

तुम्हारी प्रेम-पत्रिका मिली। छाती से लगायी। वाह! चोरी और मुॅहजोरी। अपने न आने का दोष मेरे सिर धरते हो? मेरे मन से कोई