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कमला के नाम विरजन के पत्र
 

पूछे कि तुम्हारे दर्शन की उसे कितनी अभिलाषा? अब यह अभिलाषा प्रति दिन व्याकुलता के रूप में परिणित होती जाती है। कभी-कभी वेसुध हो जाती हूॅ। मेरी यह दशा थोड़े ही दिनों से होने लगी है। जिस समय यहाॅ से गये हो, मुझे ज्ञात न था कि वहाॅ जाकर मेरी दलेल करोगे। खेर, तुम्हीं सच और मैं ही झूठ। मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई कि तुमने मेरे दोनो पत्र पसन्द किये। पर प्रतापचन्द्र को व्यर्थ दिखाये। वे पत्र बड़ी असावधानी से लिखे गये हैं। सम्भव है कि अशुद्धियाॅ रह गयी हो। मुझे विश्वास नहीं आता कि प्रताप ने उन्हें मूल्यवान समझा हो। यदि वे मेरे पत्रों का इतना आदर करते हैं कि उनके सहारे से हमारे ग्राम्य-जीवन पर कोई रोचक निबंध लिख सके, तो मैं अपने को परम् भाग्यवान् समझती हूॅ।

कल यहाॅ देवीजी की पूजा थी। हल, चक्की, पुर, चूल्हे सब बन्द थे। देवीजी की ऐसी ही आज्ञा है। उनकी आज्ञा का उल्लवन कौन करे हुक्का -पानी बन्द हो जाय। साल भर में यही एक दिन है, जिसे गॉववाले भी छुट्टी का समझते है। अन्यथा होली-दीवाली भी प्रति दिन के आवश्यक कामो को नहीं रोक सकती। बकरा चढ़ा। हवन हुआ। सत्त खिलाया गया। अब गॉव के बच्चे-बच्चे को पूर्ण विश्वास है कि प्लेग का आगमन यहाॅ न हो सकेगा। ये सब कौतुक देखकर सोयी थी। लगभग बारह बजे होंगे फि सैकड़ो मनुष्य हाथ मे मशालें लिये कोलाहल मचाते निकले और सारे गाॅव का फेरा किया। इसका यह अर्थ था कि इस सीमा के भीतर बीमारी पैर न रख सकेगी। फेरे के समाप्त होने पर कई मनुष्य अन्य ग्राम की सीमा में घुस गये और थोड़े से फूल, पान, चावल, लौग आदि पदार्थ पृथ्वी पर रख पाये । अर्थात् अपने ग्राम की बला दूसरे गाँव के सिर डाल आये । जब ये लोग अपना कार्य समाप्त करके वहाॅ से चलने लगे तो उस गाँव वालों को सुनगुन मिल गयी। सैकड़ों मनुष्य लाठियाॅ लेकर चढ़ दौड़े। दोनों पक्षवालों में खूब मार-पीट हुई। इस समय गाँव के कईमनुष्य हल्दी पी रहे है।