लो। अजी, पी भी लो। क्या दिन-दिन होली आयेगी कि सब दिन हमारे हाथ की बूटी मिलेगी?' इसके उत्तर में किसान ऐसी दृष्टि से ताकता था, मानो किसी ने उसे सजीवन रस दे दिया और एक की जगह तीन-तीन कुल्हड़ चट कर जाता। पटवारी के जामाता मुशी जगदम्बाप्रसाद साहब का शुभागमन हुआ है। आप कचहरा म आरायज़नवीस हैं। उन्हें महा- रान ने इतनी पिला दी कि आपे से बाहर हो गये और नाचने-कूदने लगे। सारा गॉव उनसे पदोरी करता था। एक किसान आता है और उनकी ओर मुसकराकर कहता है―‘तुम यहाॅ ठाढ़ी हो, घर जाके भोजन बनाओ, हम आवत हैं' इस पर बड़े जोर की हँसी होती है, काशी भर मद में माता हुआ लट्ठ कन्धे पर रखे आता और समास्थित जनों की ओर वनावटी क्रोध से देखकर गरजता है-महारान, यह अच्छी बात नहीं है कि तुम हमारी नयी बहुरिया से मजा लूटत हो।' यह कहकर मुंशीजी को छाती से लगा लेता है।
मुशीजी वेचारे छोटे कद के मनुष्य, इधर-उधर फड़फडाते हैं, पर नक्कारखाने में तूती की आवाज़ कौन सुनता है? कोई उन्हें प्यार करता है और गले लगाता है। दापहर तक यही छेड़ छाड़ हुआ की। तुलसा अभी तक बैठी हुई थी। मैंने उससे कहा―‘आज हमारे यहाॅ तुम्हारा न्योता है। हम-तुम सग खायेंगी।' यह सुनते ही महाराजिन दो थालियों में भोजन परोसकर लायी। तुलसा इस समय खिड़की की ओर मुॅह करके खड़ी थी। मैने जो उसको हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा, तो उसे अपनी प्यारी-प्यारी आँखों से मोती के सोने बिखेरते हुए पाया। मै उसे गले लगाकर बोली―‘सखी, सच-सच बतला दो, क्यों रोती हो? हमसे कोई दुराव मत रखो।' इस पर वह और भी सिसकने लगी। जब मैंने बहुत हठ की, तो उसने सिर घुमाकर कहा―‘वहिन! आज प्रातः-काल उनपर निशान पड़ गया। न जाने उनपर क्या बीत रही होगी।' यह कहकर वह फूट फूटकर रोने लगी। ज्ञात हुआ कि राधा के पिता ने कुछ,