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श्री हर्ष


उसका हृदय द्रवीभूत होगया। इतने में पतिकी जीवितावस्था में ही उसकी माता सती हो रही है, यह समाचार उसको आया। हर्ष ने यशोमति को बहुत समझाया परन्तु उसने किसी का न सुन पूर्व से ही सती होना स्वीकार किया कुछ दिन पश्चात् प्रभाकरवर्धन हर्ष को अच्छी शिक्षा दे स्वर्ग लोग को सिधार गया।

इधर राज्यवर्धन ने हूण लोगों को मार भगाया, और फिर वहग्रहवर्मा का वध थानेश्वर पंहुचा, वहां उसने अपने माता पिता की मृत्यु के समाचार जाने। अब वह गद्दी का मालिक हुआ परन्तु बौद्धधर्मी राज्यवर्धन ने अपने अधिकार हर्ष को दे देने का विचार किया, और स्वंय सन्यास धारण करने की ठानी। अभी यह बात पूर्णरूपसे भी निश्चित नहीं हुई थी कि इतने में राज्यश्री का संवादक नामी दूत यह समाचार लाया कि जिस दिन प्रभाकरवर्धन की मृत्यु की बात फैली थी, उसी दिन मालवा के राजाने ग्रहवर्मा का वध कर कन्नौज में राज्यश्री को कैद किया, और ऐसी किंवदन्ती है कि वह आपके राज्य पर भी चढाई